भारत के साथ व्यापारिक समझौता ICJ से ज्यादा महत्वपूर्ण: ब्रिटिश मीडिया
|1946 में स्थापना के बाद से पहली बार इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में ब्रिटेन का कोई जज नहीं होगा। मंगलवार को हाउस ऑफ कॉमन्स में टोरी पार्टी के सांसद रॉबर्ट जेनरिक ने ICJ से ब्रिटेन के बाहर होने को ‘ब्रिटिश डिप्लॉमसी की बड़ी नाकामयाबी’ करार दिया। लंदन के एक थिंक टैंक चैटम हाउस की असोसिएट फेलो लेजली विंजामुरी ने भी उनकी हां-में-हां मिलाते हुए कहा, ‘मुझे भी लगता है कि यह यूके के लिए बहुत बड़ा नुकसान और बड़ी शर्मिंदगी का सबब है।’
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उन्होंने कहा, ‘स्पष्ट हो गया था कि यूके जनरल असेंबली में अगला दौर पार नहीं कर रहा है जहां दुनिया का दक्षिणी हिस्से में शक्ति के ज्यादा बंटवारे के पक्ष में भरपूर समर्थन है और उनकी नजरों में भारत इस लिहाज से ज्यादा आपीलिंग कैंडिडेट था।’ विंजामुरी ने कहा, ‘वैश्विक दबदबे के मामले में ब्रिटेन को झटका लगा और जब देश में उपद्रव मचा हो तो इससे हाथ धो देना सचमुच निराशाजनक मालूम पड़ता है। बाहरी दुनिया के लिए यह ऐसा जान पड़ता है मानो ब्रिटेन पीछे हट रहा है और इसे यूरोपियन यूनियन के प्रति सच्ची वफादारी नहीं रखने के लिए दंडित किया जा रहा है।’
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हालांकि, ब्रिटने में इस धारणा के प्रति असहमति भी सामने आई। द इकॉनमिस्ट के फॉरन एडिटर रॉबर्ट गेस्ट ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि यह यूके के लिए बहुत बड़ी बात है। यह ब्रिटेन से ज्यादा संभवतः भारत के लिए बड़ी बात होगी।’ उन्होंने कहा, ‘यह बिल्कुल सामान्य सी बात है कि ब्रिटेन थोड़ी नरमी बरतने को तैयार था क्योंकि सरकार को भारत से अच्छे रिश्ते कायम रखने की बहुत चिंता थी। दरअसल, सरकार ब्रेग्जिट के बाद भारत के साथ व्यापारिक समझौते करना चाहती है। यूके के लिए यह आईसीजे में एक सीट से कहीं ज्यादा अहम है। भारत और यूके में समान लीगल सिस्टम्स हैं। यह तब समान नहीं होता जब यह सीट चीन के पास चली जाती।’
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गेस्ट ने आगे कहा, ‘भारत अभी ऐसी स्थिति में है जहां उसे दुनिया में उसकी वास्तिवक हैसियत के मुकाबले अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में कम मान्यता मिली है। इसलिए आप पता कर सकते हैं कि भारतीय और ज्यादा मान्यता क्यों चाहते हैं? भारत बहुत तेजी से एक बड़ी ताकत बनता जा रहा है और उसे एक सीट मिलना बिल्कुल जायज और उचित है।’
संडे एक्सप्रेस के सुरक्षा और कूटनीतिक संपादक मार्को जिनैंजली ने कहा, ‘मैंने जैसा सुना कि यह भारत का भरोसा जीतने के लिए किया गया क्योंकि ब्रेग्जिट के बाद आईसीजे में एक जज से ज्यादा महत्वपूर्ण हमारा रिश्ता है। मैं मानता हूं कि संयुक्त राष्ट्र में ज्यादा प्रतिनिधित्व और बदलाव की बहुत दरकार महसूस की जा रही है, खासकर भारत की ओर से जो खुद को सुपरपावर बनता देख रहा है। मुझे लगता है कि दूसरे प्रतिद्वंद्वी के रूप में भारत के रहने के कारण ब्रिटेन में कम चिंता थी क्योंकि भारत में भी कानून का आधार स्तंभ यूके जैसा ही है।’
भारतीय मूल के टोरी पार्टी के सांसद शैलेश वारा ने कहा, ‘यह यूके के लिए निराशाजनक है, लेकिन थोड़ी राहत की बात यह है कि यह (आईसीजे की सीट) भारत के पास गई है जो यूके के बहुत करीब है और जिसके साथ हमारा सबसे मजबूत रिश्ता है।’
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