बैड लोन से परेशान बैंक कर रहे हैं ‘लेजी बैंकिंग’

गायत्री नायक, मुंबई
रिजर्व बैंक के गवर्नर बनने की रेस में शामिल राकेश मोहन ने जिसे 10 साल पहले ‘लेजी बैंकिंग’ कहा था, बैंक इन दिनों वही कर रहे हैं। तब वह आरबीआई में डेप्युटी गवर्नर थे। बैंक इन दिनों बैड लोन से परेशान हैं और हाई रेटिंग वाली कंपनियों की तरफ से कर्ज की मांग कम है। वे प्रॉजेक्ट्स के लिए लोन नहीं दे रहे हैं और ज्यादा सरकारी बॉन्ड्स खरीद रहे हैं।

इंक्रिमेंटल इन्वेस्टमेंट-डिपॉजिट रेशियो यानी बैंक डिपॉजिट के जिस अनुपात का इस्तेमाल बॉन्ड खरीदने के लिए करते हैं, वह जून में 56 पर्सेंट बढ़ा है, जबकि मार्च में इसमें 17 पर्सेंट का इजाफा हुआ था। इसका मतलब यह है कि बैंक अगर 100 रुपये का डिपॉजिट जुटा रहे हैं तो उसमें से 56 रुपये से सरकारी बॉन्ड खरीद रहे हैं। यह जानकारी आरबीआई के डेटा से मिली है। इससे पता चलता है कि बैंक रिस्क उठाने के लिए तैयार नहीं हैं। बैड लोन में बढ़ोतरी के बीच उन्हें बिजनस के फैसलों में गलती होने पर जांच एजेंसियों का डर सता रहा है। राकेश मोहन ने 10 साल पहले कहा था कि बैंकों का सरकारी बॉन्ड में अधिक निवेश ‘लेजी बैंकिंग’है।

हालांकि, बैंकों का कहना है कि लोन की अधिक मांग नहीं है। इसलिए उन्हें मजबूरी में सरकारी बॉन्ड खरीदना पड़ रहा है। एसबीआई में ग्लोबल मार्केट्स के डिप्टी एमडी सी वेंकट नागेश्वर ने कहा, ‘लोन की मांग नहीं है। इसलिए हम सरकारी बॉन्ड सहित दूसरे एसेट्स में संसाधन लगा रहे हैं। यह लेजी बैंकिंग नहीं है। बैंक सरकारी बॉन्ड में सरप्लस मनी ही लगाते हैं।’ वहीं, प्रॉजेक्ट्स की फंडिंग को लेकर कंपनियों और बैंकों में तू तू मैं मैं भी चल रही है। बैंक कह रहे हैं कि कई प्रोजेक्ट्स ऐसे हैं, जिन्हें लोन दिया गया तो उसके वापस आने की संभावना नहीं है। वहीं, कंपनियों का कहना है कि बैंक रिस्क से बचने की कुछ ज्यादा ही कोशिश कर रहे हैं।

आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने भी हाल में कहा था कि अधिक ब्याज दर की वजह से लोन ग्रोथ कमजोर नहीं है। उनके मुताबिक, बैड लोन और बैंकों के रिस्क से बचने के चलते लोन की मांग कम दिख रही है। राजन ने कहा था, ‘कुछ क्षेत्रों में बैंक लोन में कमी आई है। खासतौर पर इंडस्ट्री और स्मॉल एंटरप्राइजेज सेगमेंट में।’ उनके मुताबिक, ‘ऐसा लग रहा है कि सरकारी बैंक इन्फ्रस्ट्रक्चर सेक्टर में उम्मीदें घटा रहे हैं। 2014 की शुरुआत से ही यह ट्रेंड दिख रहा है। इनफ्रास्ट्रक्चर इंडस्ट्री से बढ़े रिस्क के चलते बैंकों ने शायद यह कदम उठाया है।’

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