पीएनबी घोटाले के बाद LoU को लेकर बैंकों में सख्ती, छोटी कंपनियों के लिए बढ़ी मुश्किल
|नीरव मोदी और उनके मामा मेहुल चौकसी ने लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (LoU) के जरिए पंजाब नैशनल बैंक में 11,300 करोड़ रुपये का घोटाला कर डाला। देश के सबसे बड़े बैंकिंग फ्रॉड के बाद दोनों फरार हैं, लेकिन उनकी करतूत से दूसरे व्यापारियों और छोटे कंपनियों के लिए रास्ता मुश्किल हो गया है। पीएनबी फ्रॉड का खुलासा होने के बाद अब सभी बैंकों ने LoU को लेकर अपने नियमों की दोबारा पड़ताल शुरू कर दी है और इन्हें सख्त बनाया जा रहा है। इसका नतीजा यह होगा कि छोटी कंपनियों के लिए शॉर्ट टर्म ओवरसीज क्रेडिट हासिल करना मुश्किल हो जाएगा।
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स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, आईसीआईसीआई बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, ऐक्सिस बैंक जैसे बड़े कर्जदाता हों या अपेक्षाकृत छोटे और भौगोलिक रूप से सीमित लेंडर्स सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, यूनाइडेट बैंक ऑफ इंडिया, मैनेजमेंट ने अपने सिस्टम और प्रोसेस की जांच शुरू कर दी है। बैंकों की कोशिश है कि दरारों को तुरंत बंद किया जाए।
इसके अलावा बैंक अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए वित्तीय उपकरणों को भी महंगा कर रहे हैं। अलग-अलग समय सीमा के लिए LIBOR (बेंचमार्क रेट जो बैंक एक दूसरे को शॉर्ट टर्म लोन के लिए चार्ज करते हैं) के ऊपर 5-10 बेसिस पॉइंट्स। चुनिंदा बैंक LIBOR पर 30-40 बेसिस पॉइंट्स अधिक चार्ज कर रहे हैं।
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बैंक ऑफ बड़ौद के एक एग्जिक्युटिव ने कहा, ‘फंसे लोन के अनुपात को कम करने के लिए ग्राहकों की संख्या से अधिक महत्वपूर्ण ग्राहकों की साख है।’ कई बैंकों ने ET को बताया कि क्रेडिट डिस्काउंटिंग सिस्टम को केंद्रीयकृत किया जा रहा है या कोर बैंकिंग सॉल्यूशन को अनिवार्य किया जा रहा है।
11,300 करोड़ रुपये के घोटाले ने पीएनबी में निरीक्षण और आंतरिक नियंत्रण की असफलता को उजागर कर दिया है। रिजर्व बैंक ने कहा है कि उसने नियंत्रण प्रणाली की व्यवस्था संबंधी आकलन कर लिया है और अब वह मामले में और कड़ी नजर रखेगा।
बैंक ऑफ बड़ौदा ने क्रेडिट लाइन्स (L/C) या लेटर्स ऑफ अंडरटेकिंग (LoU) डिस्काउंटिंग सिस्टम को सेंट्रलाइज करने का फैसला किया है। देश का सबसे बड़े बैंक एसबीआई भी यही कर रहा है।
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एसबीआई के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कोच्चि में एक कार्यक्रम के दौरान कहा, ‘यह प्रयास लगातार जारी रहता है और हम प्रक्रिया में मौजूद दरारों को भरते हैं।’
कई बैंकों ने विदेशों में मौजूद अपने ब्रांचों में कहा है कि वे LoU के बदले पेमेंट जारी करने से पहले एक्सपोजर लिमिट की जांच करें। बैंकों ने चेकलिस्ट चिपकाना शुरू कर दिया है। लेंडर्स अब केवल SWIFT मेसेज पर विश्वास नहीं कर रहे हैं। जब भी घरेलू बैंक से विदेश में स्थित किसी ब्रान्च को LoU मिलता है, तो तुरंत उस बैंक से सीधे संपर्क करके यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि LoU सही अथॉरिटी से जारी हुई है।
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय बैंकों को पिछले पांच साल में 8,670 लोन धोखाधड़ी के मामलों में बैंकों को 61,260 करोड़ से अधिक की चपत लगी है।
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