दिल्ली में गहराया प्रशासनिक संकट!


रामेश्वर दयाल, नई दिल्ली

देश की राजधानी दिल्ली में प्रशासनिक संकट गहराता नजर आ रहा है। सुप्रीम कोर्ट के कथित आदेश के बावजूद अफसरों ने सरकार के ‘अनुचित आदेशों’ को मानने से इनकार कर दिया है। इस इनकार से गुस्साई सरकार एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है। फिलहाल सरकार अपने वकीलों की सलाह ले रही है। दूसरी ओर राजनिवास का कहना है कि सरकार के अधिकारों को लेकर सुप्रीम के आए आदेशों पर विधि विशेषज्ञों से बातचीत करेगा। डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने आज स्पष्ट कर दिया है कि अगर अफसर कहना नहीं मानेंगे तो सरकार चल ही नहीं पाएगी।

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर कल दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने खासी खुशी जताई थी और कहा था कि अब सरकार तेजी से जनहित के काम करेगी। इस काम को अंजाम देने के लिए अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर सिसोदिया ने कल शाम सविर्सेस विभाग को आदेश जारी किए थे, लेकिन चीफ सेक्रेटरी अंशु प्रकाश ने रात को ही सिसोदिया को सूचित कर दिया कि विभाग उनके आदेश को मानने को बाध्य नहीं है। उनका तर्क था कि कल सुप्रीम कोर्ट के दिए गए आदेश में अगस्त 2016 के केंद्रीय गृह मंत्रालय के उस नोटिफिकेशन को को रद्द नहीं किया गया है जिसमें ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार उपराज्यपाल, चीफ सेक्रेटरी या सेक्रेटरी को दिया गया था। इस इनकार ने दिल्ली में प्रशासनिक संकट पैदा कर दिया है और माना जा रहा है कि अफसर यह मान रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कुछ नया नहीं है। इसलिए सरकार के आदेशों को मानना आवश्यक नहीं है।

दूसरी ओर आज सुबह बढ़ते प्रशासनिक संकट को लेकर डिप्टी सीएम सिसोदिया पत्रकारों से रूबरू हुए ओर इस बात पर दुख जताया कि दिल्ली सरकार के अधिकारी सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ का आदेश मानने से इनकार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर अब उपराज्यपाल के पास कोई पॉवर नहीं बची है। इसके बावजूद अफसर हमारा कहा नहीं मानेंगे और काम नहीं करेंगे तो सरकार चल ही नहीं पाएगी। उन्होंने कहा कि ऐसे तो दिल्ली में संवैधानिक संकट खड़ा हो जाएगा। सिसोदिया ने कहा कि अफसर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना कर रहे हैं। सर्विस का मसला अब दिल्ली सरकार के पास है। यह पूछे जाने पर क्या वह इस अवमानना को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे, डिप्टी सीएम ने कहा कि अभी हम अपने वकीलों की सलाह ले रहे हैं। उनसे विचार विमर्श के बाद ही कोई निर्णय लिया जाएगा।

इस बीच सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर राजनिवास ने फिलहाल चुप्पी साध रखी है। उपराज्यपाल अनिल बैजल की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। वैसे इस मसले पर राजनिवास से जुड़े सूत्र का कहना है कि दिल्ली सरकार के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट 500 से अधिक पेज का है। इसलिए उसका अध्ययन किया जा रहा है। सूत्र के अनुसार चूंकि मसला संवेदनशील रूप ले चुका है, इसलिए जजमेंट को ‘समझने’ के लिए विधि विशेषज्ञों की सेवाएं भी ली जाएंगी। वैसे राजनिवास के एक आला अधिकारी का कहना है कि शुरुआती दौर में जो समझ आ रहा है, उससे लग रहा है कि सुप्रीम कोर्ट अभी भी एलजी को प्रशासनिक प्रमुख मान रहा है। इसलिए उन्हें अब नियमों के अनुसार चलने के साथ-साथ विवेक का भी इस्तेमाल करने को कहा गया है।

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