एक भारतीय जेईटीपी की बुनियाद

विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों ने वातावरण को प्रदूषित किया और यह उचित ही है कि वे गरीब देशों को संसाधन मुहैया कराएं जहां कार्बन आधारित वृद्धि अब व्यावहारिक नहीं है। दो जलवायु वित्त चैनल हैं जो निवेश क्षमता और निवेश की समस्याओं को हल करने का प्रयास कर रहे हैं। द ग्लोबल एन्वॉयरनमेंटल, सोशल ऐंड गवर्नेंस या ईएसजी अवधारणा जो पहले आई, इसने स्वच्छ ऊर्जा के लिए बड़े पैमाने पर सस्ती वित्तीय मदद मुहैया कराई। परंतु इसके लिए निवेश की क्षमता आवश्यक थी। यह परिपक्व बाजार में ऊर्जा क्षेत्र के लिए जरूरी बुनियाद है। जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप या जेईटीपी जलवायु वित्त व्यवस्था का दूसरा चैनल है। भारत की बात करें तो जेईटीपी को एक बार में एक राज्य के लिए काम करना चाहिए और उस राज्य को निवेश लायक बनाने के लिए बिजली के क्षेत्र में सुधारों को आंशिक रूप से फंड करना चाहिए।

जलवायु न्याय का विचार कहता है कि चूंकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं ने वातावरण को प्रदूषित किया है इसलिए गरीब देश वैसी ही प्रक्रियाएं अपनाकर समृद्धि हासिल नहीं कर सके। इन दावों के बारे में कुछ कहा जाना आवश्यक है जबकि इसके साथ ही कई सीमाओं को भी चिह्नित करना होगा। ऐसे में गरीब देश कहते हैं कि विकसित बाजारों को उनकी ऊर्जा बदलाव की कोशिशों के लिए संसाधन सहायता करनी चाहिए। जेईटीपी के दो बड़े कार्यक्रम दक्षिण अफ्रीका और इंडोनेशिया में चल रहे हैं और यही जलवायु वित्त व्यवस्था का दूसरा नया चैनल है। हम भारतीयों को इस परिदृश्य को समझना होगा और साथ ही विभिन्न कारकों के प्रोत्साहन और दिखावे को लेकर सतर्क रहना होगा। हम पाते हैं कि भारत में ऊर्जा बदलाव को लेकर सबसे अहम संगठित करने वाला सिद्धांत है निवेश और निवेश योग्यता के बीच भेद।

निवेश की बात करें तो वह निजी कंपनियों का कारोबार है जो उत्पादन, भंडारण, वितरण और पारेषण का काम करती हैं और जो बाजार आधारित विद्युत क्षेत्र का हिस्सा है। इस क्षेत्र में ऐसी कंपनियां होनी चाहिए जो ऐसे निर्णय लें जो मूल्य और संभावित लाभ से निर्धारित होते हों। इन कंपनियों पर सही मायने में खतरा होगा और बदलती कीमतों के मुताबिक उनको लगातार अपना व्यवहार बदलना होगा। कीमतों पर सभी स्तरों पर उतार-चढ़ाव आएगा और मांग तथा आपूर्ति में भी। मांग और आपूर्ति के साथ ही कीमतों में सभी स्तरों पर उतार चढ़ाव आएगा। यानी मांग और आपूर्ति दोनों पक्ष ऊर्जा बदलाव से संबंध रखते हैं।

जबकि निवेश के लिए जलवायु वित्त व्यवस्था की समस्या मोटे तौर पर हल हो चुकी है: ईएसजी निवेश के रूप में लगभग असीमित विदेशी पूंजी रूपी संसाधन इस क्षेत्र में उपलब्ध हैं। इसमें विकसित बाजारों के पेंशनधारक और बीमा ग्राहक शामिल हैं जिन्हें भारत में ऊर्जा बदलाव को फंडिंग के बदले अपने निवेश पर बाजार दर से कुछ कम प्रतिफल हासिल होता है। वैश्विक ईएसजी निवेश ने मुंबई में निवेश वित्त की जमीनी हकीकतों को बदला है। ईएसजी भारतीय ऊर्जा बदलाव की सहायता करने में सक्षम है तथा यह वर्तमान और भविष्य के भारतीय वित्तीय नियमन की सीमाओं, पूंजी नियंत्रण, कर नीति और विधि के शासन के अनुरूप है।

अब मुंबई में जीवाश्म ईंधन कारोबार के लिए वित्तीय सौदे हासिल करना मुश्किल है जबकि स्वच्छ ऊर्जा कारोबार के लिए आसान। भारत में जलवायु वित्त की बात करें तो एक ओर वैश्विक वित्तीय तंत्र से मजबूत परियोजनाओं के लिए असीमित पूंजी उपलब्ध है तो वहीं दूसरी ओर भारतीय बिजली क्षेत्र में अलग तरह की सीमाएं हैं। हमारी बुनियादी समस्या यह है कि हमारा बिजली क्षेत्र सरकारी नियंत्रण में काम करता है।

लेखकों ने रणनीतियों को लेकर काफी कुछ लिखा है। नीतिगत शोध, डिजाइन, क्षमता निर्माण आदि के क्षेत्र में काफी काम करने की आवश्यकता है कि ताकि जरूरी बिजली सुधारों को अंजाम दिया जा सके। एकबारगी बड़ी धनराशि का व्यय आवश्यक है ताकि नीतिगत दिक्कतों से निजात पाकर निवेश की अर्हता हसिल की जा सके और असीमित निवेश हासिल हो। इस एकबारगी व्यय के तीन स्रोत हैं: (अ) समान्य बजट संसाधन (ब) बिजली क्षेत्र में सरकारी परिसंपत्तियों के निजीकरण से होने वाली प्राप्तियां और (स) अमीर देशों से मिलने वाली सहायता। जेईटीपी इस सहायता में कारगर है।

जेईटीपी के दक्षिण अफ्रीका और इंडोनेशिया के दस्तावेज दानदाताओं, आधिकारिक राशि और निजी धनराशि का मिश्रण हैं। ऐसे में निवेश और निवेश अर्हता का भी मिश्रण तैयार होता है। भारत में हमें भी निवेश की समस्या को परे करके देखना चाहिए। भारतीय वित्तीय कंपनियां वैश्विक ईएसजी धड़ों में भी अच्छी तरह शामिल हैं और वैश्विक निजी पूंजी को भारतीय निजी बिजली संबंधी निवेश में लाने में मदद कर सकती हैं। भारतीय जेईटीपी का ध्यान निवेश की अहर्ता पर होना चाहिए। दक्षिण अफ्रीका अनुभव बताता है कि 8.5 अरब डॉलर के एक जेईटीपी ने 98 अरब डॉलर के कुल निवेश के लिए प्रेरक का काम किया है।

हमें चार सिद्धांतों पर जोर देना चाहिए

भारत एक विविधता वाला उपमहाद्वीप है। विविधता में इसकी तुलना यूरोपीय संघ से की जा सकती है। बिजली क्षेत्र के सुधार के लिए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग रणनीति अपनानी होगी। एक समय पर एक ही राज्य में इस दिशा में काम किया जाना चाहिए। जेईटीपी को भी एक समय पर एक राज्य के साथ काम करना चाहिए और गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु जैसे निर्यात करने वाले राज्यों को प्राथमिकता देनी चाहिए क्योंकि इन्हें अपने-अपने निर्यात ठिकानों पर कार्बन कराधान का सामना करना होगा।

जेईटीपी को सुधार कार्यक्रमों के वित्तीय घटक के रूप में देखा जाना चाहिए। बाहरी संसाधन आवश्यक हैं लेकिन वह सुधार कार्यक्रमों के लिए पर्याप्त शर्त नहीं है। सुधार कार्यक्रमों को वित्त मुहैया कराने के लिए तीन जगह से राशि आनी चाहिए: बजट संसाधन, सरकार के निर्गम से हासिल राशि और अमीर देशों से प्राप्त सहायता।

अधिकारियों के पास भी अपनी कामयाबी को बढ़ाकर बताने का प्रोत्साहन होता है। दानदाता और सरकारी पैसे को लेकर होने वाली चर्चा में केवल उस पैसे पर ध्यान होना चाहिए जो इस सुधार कार्यक्रम की सहायता करता है न कि निजी ईएसजी राशि पर। इसी प्रकार पैसे को लेकर होने वाली चर्चा में डॉलर मूल्य पर ध्यान देना चाहिए।

जलवायु समुदाय को एक तारीख चाहिए उदाहरण के लिए यह कि तमिलनाडु कब तक जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली से मुक्त हो जाएगा। जलवायु नीति पारेषण प्रणाली मूल्य व्यवस्था के जरिये काम करती है। विशुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य की एक पूर्व शर्त यह है कि एक ऐसी तारीख घोषित की जाए जब तक किसी राज्य मान लेते हैं तमिलनाडु का बिजली क्षेत्र निजी व्यक्तियों की दृष्टि में निवेश योग्य हो जाएगा।

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