ईपीएफओ पेंशन विवादः छूट वाली कंपनियों के एंप्लॉयीज को ज्यादा पेंशन पर सुप्रीम कोर्ट करेगा फैसला

नई दिल्ली
एंप्लॉयीज प्रविडेंट फंड ऑर्गनाइजेशन (ईपीएफओ) के यू टर्न के बाद सवाल खड़ा हो गया है कि क्या छूट वाली कंपनियों के कर्मचारियों को बढ़ी हुई पेंशन मिलेगी या नहीं। बता दें, जिन कंपनियों के कर्मचारियों का फंड प्राइवेट ट्रस्ट द्वारा मैनेज किया जाता है उन्हें छूट वाली कंपनियां कहा जाता है और जिन कंपनियों का फंड ईपीएफओ मैनेज करता है, उन्हें बगैर छूट वाली कंपनी कहा जाता है। करीब 80 लाख कर्मचारी छूट वाली कंपनियों के दायरे में आते हैं। इस विवाद को सुलझाने को लेकर ईपीएफओ ने सुप्रीम कोर्ट को ही फैसला सुनाने को कहा है।

12 रिटायर्ड कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डालकर बढ़ी हुई पेंशन की मांग की थी और केस जीतने के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ईपीएफओ इस बात पर राजी हो गया था कि एंप्लॉयी पेंशन स्कीम (ईपीएस) के सदस्यों को पूरे वेतन पर पेंशन देगा। हालांकि, इसमें ईपीएफओ ने इस बात का जिक्र नहीं किया था कि ये सभी तरह की कंपनियां होंगी या सिर्फ बगैर छूटवाली कंपनियां। बाद में, ईपीएफओ ने बगैर छूटवाली कंपनियों के कर्मचारियों को ही यह अवसर देने का फैसला किया।

ईपीएफओ ने सभी को ज्यादा पेंशन देने से किया इनकार

छूट वाली कंपनियां नाखुश
इस पर छूट वाली कंपनियों और उनके कर्मचारियों में रोष उत्पन्न होना ही था और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। विवाद बढ़ने के बाद अब ईपीएफओ ने गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में डाल दी है और गुजारिश की है कि सुप्रीम कोर्ट सभी कर्मचारियों की याचिकाओं को अलग-अलग हाई कोर्ट में भेज दे। अगर ऐसा हुआ तो ईपीएफओ को सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ना होगा।

प्राइवेट पीएफ ट्रस्ट के साथ हो रहे इस भेदभाव पर टीमलीज सर्विसेज की सीनियर वाइस प्रेजिडेंट नीति शर्मा का कहना है कि प्राइवेट प्लेयर्स के साथ इस तरह का व्यवहार करने का कोई कारण नहीं है। प्राइवेट पीएफ कंपनियां कर्मचारियों के लिए खुद एक छत की तरह काम करती हैं। अगर ईपीएफओ छूट वाली कंपनियों के कर्मचारियों को भी पूरी सैलरी पर पेंशन के योगदान को स्वीकार करती है तो सिर्फ इसके प्रॉसेस में थोड़ा वक्त लगेगा। हालांकि, अगर गाइडलाइंस सही हो तो इसे लागू करने में कोई मुश्किल नहीं आएगी।

क्या है ईपीएफओ की दलील
मार्च 1996 में ईपीएस एक्ट में बदलाव हुआ जिसमें कर्मचारियों की 15,000 रुपये वेतन की सीमा के साथ ईपीएस में 8.33% योगदान ही स्वीकार किया जाना तय किया गया। पेंशन भी 15,000 रुपये प्रति माह के वेतन पर ही दी जाती है। यदि पूरे वेतन पर ईपीएस में योगदान स्वीकार किया जाता है तो रिटायरमेंट के बाद पेंशन भी पूरे वेतन पर ही देनी होगी।

पूरे वेतन पर दी जाने वाली पेंशन 15 हजार रुपये की सीमा वाली पेंशन से कई गुना ज्यादा होगी। इसी को लेकर 2005 में कई प्राइवेट ईपीएफ फंड ट्रस्टीज और कर्मचारी ईपीएफओ पहुंचे और पूरे वेतन पर पेंशन के योगदान को लेने की मांग की। इसके पीछे ईपीएफओ ने दलील दी है कि एंप्लॉयी और एंप्लॉयर्स को तय सीमा से ज्यादा वेतन पर योगदान की जानकारी फैसले के 6 महीने के भीतर देनी चाहिए थी, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने ईपीएफओ की 6 महीने वाली दलील को मनमाना बताते हुए इसे खत्म करने का निर्देश दिया था

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