‘इस्लामिक स्टेट’ में लोग भूखे पेट सोने को मजबूर

आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट अन्य आतंकी संगठनों जैसे अल कायदा और अन्य जिहादी ग्रुपों से हटकर है। इस्लामिक स्टेट ने एक वास्तविक साम्राज्य की नींव डाली है जहां सरकारी संस्थान और इकॉनमी भी है जबकि अन्य आतंकी संगठनों ने ऐसा नहीं किया। हालांकि इस्लामिक स्टेट को अपने नियंत्रण में लाखों लोगों को लाकर शासन करने में सफलता मिली है लेकिन उसके शासन में खाना, ईंधन एवं रोजमर्रा की जरूरत के अन्य सामान या तो वहां तक पहुंचना ही असंभव है या इतने महंगे हैं कि लोग उनको खरीदने में सक्षम नहीं है।

वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, आईएस के कब्जे वाले इलाके में रहने वाले या वहां से भागने वाले तीन दर्जन से ज्यादा लोगों के इंटरव्यू में एक नया खुलासा हुआ। उन लोगों ने बताया कि इस्लामिक स्टेट के शासन में दो तरह का सिस्टम है। वहां आम आदमी खाने को तरस रहे हैं जबकि इस्लामिक स्टेट के लोगों को मुफ्त बिजली और खाना सारी सुविधाएं मिल रही है। यहां तक कि आयातित सामान जैसे रेड बुल एनर्जी ड्रिंक्स वगैरह भी आईएस के लोगों को प्रचुर मात्रा में मिल रही है।

जिन लोगों का इंटरव्यू लिया गया उन लोगों ने बताया कि जिन इलाकों में फल और सब्जियां उगती हैं या जहां भारी संख्या में जानवर पाले जाते हैं, वहां खाना आसानी से मिल जाता है। लेकिन, लड़ई के कारण सप्लाई मार्ग के बंद होने से बुनियादी जरूरत की चीजें जैसे चीनी या बेबी फॉर्म्युला तक नहीं मिल पाता है। स्मगलिंग के जरिए ये सामान आते भी हैं तो बहुत ही महंगे होते हैं।

उन लोगों ने बताया कि स्थिति और बुरी इसलिए है क्योंकि भारी संख्या में लोग बेरोजगार हैं। फैक्ट्रियां और बड़े स्टोर बंद हो चुके हैं क्योंकि उनके मालिक या तो सब कुछ छोड़कर भाग गए हैं या तस्करी किया हुआ कच्चा सामान खरीदने की कोई हिम्मत नहीं रखते। उनलोगों ने बताया कि यहां हालत ऐसी हो चुकी है कि लोग भूखे मरने को मजबूर हैं।

उत्तरी सीरिया के एक शहर में रहने वाली 70 वर्षीय वृद्धा फातेन हुमैदा ने बताया कि दो साल पहले जब आईएस का वहां कब्जा नहीं हुआ था तो प्रोपेन गैस के एक टैंक की कीमत आधा डॉलर यानी करीब 33 रुपये पड़ती थी। अब आतंकियों का कब्जा होने के बाद यही गैस 32 डॉलर यानी करीब 2100 रुपये हो गई है। उन्होंने बताया कि पहले यह शहर स्वर्ग समान था लेकिन अब हमारा जीवन नरक हो गया है।

इसी तरह की आपबीती सीरिया के रक्का शहर से अपने परिवार समेत अमन से 40 मील पूर्व में रेगिस्तान में बने शरणार्थी कैंप में पनाह लेने आई आमिना मुस्तफा ने बताया, ‘मैं सिर्फ दाल और चावल बनाती हूं।’ उन्होंने बताया कि पिछले साल इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने उनके पति की गोली मारकर हत्या कर दी। पति की मृत्यु के बाद उनके परिवर ने उनको इलेक्ट्रिक प्रेशर कूकर दिया था लेकिन वहां दिन में सिर्फ एक घंटे बिजली आती है।

वह बताती हैं, ‘जब बिजली आती है तो मैं पकाने के लिए भागती हूं। अगर उस समय चूक जाती हूं तो हमारे बच्चों को भूखे रहना पड़ता है। हमारे पास एक रेफ्रिजेरेटर है लेकिन हम इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।’

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