TCS के परफॉर्मेंस से निकले $100 अरब के सवाल
|पिछले सप्ताह की शुरुआत में बने एक रेकॉर्ड से इंडिया इंक के नए शिखरों को छूने का दौर शुरू हो सकता है। 23 अप्रैल को टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज लिमिटेड (TCS) का मार्केट कैपिटलाइजेशन 100 अरब डॉलर का आंकड़ा पार कर गया। यह 103 अरब डॉलर यानी 6.8 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इसका शेयर बीएसई पर 3557 रुपये के हाई पर चला गया। हालांकि उस दिन के ऊपरी स्तर से मार्केट कैप नीचे आ गया है, लेकिन हफ्ते के दौरान यह उसी के आसपास बना रहा। बीएसई के मुताबिक, टीसीएस का शेयर शुक्रवार को 3454.80 रुपये पर बंद हुआ। इस तरह इसका मार्केट कैपिटलाइजेशन 99.27 अरब डॉलर यानी 6.61 लाख करोड़ रुपये पर है।
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इसे देखते हुए यह सवाल भी उठ रहा है कि अगला कौन? अब नजरें रिलायंस इंडस्ट्रीज और एचडीएफसी बैंक पर हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने 27 अप्रैल को रेकॉर्ड हाई बनाया और 6.3 लाख करोड़ रुपये के मार्केट कैप पर पहुंच गई। इसके बाद नंबर आईटीसी, मारुति सुजुकी इंडिया और हिंदुस्तान यूनीलीवर का है। ये कंपनियां अगले कुछ वर्षों में 100 अरब डॉलर क्लब में शामिल हो सकती हैं। मार्केट कैप के लिहाज से कंपनियों की ग्लोबल लिस्ट में टीसीएस अभी 104वें और रिलायंस 119वें नंबर पर है। एचयूएल और मारुति अभी काफी नीचे हैं, लेकिन इन कंपनियों ने पिछले कुछ वर्षों में तेजी से अपना मार्केट कैप बढ़ाया है।
मार्केट पर नजर रखने वाले अब सवाल कर रहे हैं कि क्या यह भारतीय कंपनियों की ग्रोथ के एक नए दौर की शुरुआत है, जिनमें से कई अब मार्केट कैप के लिहाज से ग्लोबल टॉप 100 कंपनियों में शामिल हैं।
हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस खेल में गोलपोस्ट लगातार बदलते रहते हैं। रिलायंस इससे पहले 18 अक्टूबर 2007 को 100 अरब डॉलर क्लब में एक बार जा चुकी है। उस दिन दोपहर के बाद कंपनी के 10.57 लाख शेयरों की ट्रेडिंग हुई थी, जिससे शेयर 114 गुना से ज्यादा उछल गया था और 2805 रुपये के अपने लाइफटाइम हाई पर चला गया था। मार्केट कैप उस दिन 4.07 लाख करोड़ रुपये था। तब रुपया डॉलर के मुकाबले 39.9 पर था। अब 66-67 रुपये के बराबर एक डॉलर है। रिलायंस के लिए दूसरी कोशिश करने का यह सही वक्त दिख रहा है।
कमजोर रुपया टीसीएस के लिए अच्छा संकेत है, जिसे अपनी 123100 करोड़ रुपये की सालाना कमाई का अधिकांश हिस्सा एक्सपोर्ट्स से हासिल होता है। ऐसे में संभावना बन रही है कि टाटा ग्रुप की यह कंपनी 100 अरब डॉलर क्लब में बनी रहेगी या उसके बेहद करीब रहेगी।
टीसीएस के फॉर्मर एमडी और वाइस चेयरमैन एस रामादोराई का कहना है कि मार्केट कैप के लिहाज से टॉप 10 भारतीय कंपनियों में से हर उस कंपनी के पास 100 अरब डॉलर क्लब में पहुंचने की क्षमता है, जिसका बिजनस एक्सपोर्ट्स ओरिएंटेड है। उन्होंने हालांकि कहा कि ऐसा होने में मदद तभी मिलेगी, जब रुपया कमजोर हो। 1996 से 2009 के बीच टीसीएस की कमान संभालने वाले रामादोराई ने कहा कि टेक्नॉलजी, लोगों और कस्टमर ओरिएंटेशन पर लगातार फोकस बनाए रखने से टीसीएस को कामयाबी मिली है।
इंडिया इंक के लिए उम्मीद का आसमां
पिरामल एंटरप्राइजेज के चेयरमैन और टाटा ग्रुप की पैरेंट कंपनी टाटा संस के डायरेक्टर अजय पिरामल ने कहा, ‘टीसीएस की यह उपलब्धि इंडिया इंक के लिए एक अहम पड़ाव है। ऐसी उपलब्धियों का दूसरों पर भी असर पड़ता है।’
कोटक म्यूचुअल फंड एमडी और सीईओ नीलेश शाह ने कहा कि टीसीएस ने अपने आईपीओ के बाद मार्केट से बिना कोई पैसा जुटाए यह मुकाम हासिल किया है। उनका कहना हे कि तेज ग्रोथ, फोकस बनाए रखते हुए माहौल के हिसाब से खुद को बदलने वाले मैनेजमेंट और प्रॉफिटेबिलिटी कायम रखने से कोई भी कंपनी दिग्गज बन सकती है। उन्होंने कहा, ‘टीसीएस के पास ये तीनों गुण हैं।’
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के ज्वाइंट मैनेजिंग डायरेक्टर रामदेव अग्रवाल ने कहा कि जल्द ही कम से कम तीन-चार भारतीय कंपनियां 100 अरब डॉलर क्लब में होंगी। उन्होंने कहा कि इस उपलब्धि ने भारतीय कंपनियों की क्षमता दिखाई है।
फंड मैनेजर केनेथ एंड्राडे का भी कहना है कि अगर भारत अगले एक दशक में 2.2 लाख करोड़ डॉलर की इकनॉमी से 6-7 लाख करोड़ डॉलर की इकनॉमी बनता है तो कई कंपनियां 100 अरब डॉलर क्लब में जाएंगी। भारतीय बाजार में छह-सात साल से पैसा अच्छा-खासा आ रहा है। हालांकि अब यह ऐसे दौर में कदम रख रहा है, जिसमें कॉरपोरेट प्रॉफिटेबिलिटी अहम बन जाएगी। एंड्राडे ने कहा कि चार वर्षों में इंडियन कॉरपोरेट सेक्टर की प्रॉफेटिबिलिटी दोगुनी हो जाएगी। उन्होंने कहा, ‘और ऐसा टॉप ब्रेकेट में काफी कंपनियों के पहुंचे बना तो होगा नहीं।’
कोटक के शाह ने हालांकि इस सिद्धांत से असहमति जताते हुए कहा कि केवल एचडीएफसी बैंक और रिलायंस इंडस्ट्रीज के भी निकट भविष्य में 100 अरब डॉलर क्लब में जाने की गुंजाइश दिख रही है। उन्होंने कहा कि एक तो मसला रुपया-डॉलर रेट में उतार-चढ़ाव के कारण गोलपोस्ट बदलते रहने का है। इसके चलते रुपये में 100 अरब डॉलर का पड़ाव लगातार बदलता रहता है। शाह के मुताबिक दूसरी बात यह है कि 2.2 लाख करोड़ डॉलर पर भारतीय अर्थव्यवस्था अभी छोटी है और भारतीय कंपनियों को इकनॉमी के बढ़ने का इंतजार करना होगा।
सरकारी कंपनियों में भी है दम
रुपये के पहलू को अलग रख दें तो भी टर्नओवर के साथ प्रॉफिटेबिलिटी पर लगातार फोकस रखना होगा ताकि भारतीय कंपनियों का मार्केट कैप 100 अरब डॉलर की ओर बढ़े। एक्सपर्ट्स का कहना है कि मार्केट कैपिटलाइजेशन का गेम कभी भी सीधा नहीं होता है।
उदाहरण के लिए, टर्नओवर के लिहाज से भारत की सबसे बड़ी कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन है। ग्रॉस सेल्स के लिहाज से यह प्राय: टॉप 500 कंपनियों की ग्लोबल लिस्ट में शामिल हो जाती है। पिछले साल आईओसी 161वें स्थान पर थी, लेकिन मार्केट कैप के लिहाज से यह काफी पीछे थे और इसका प्रॉफिट मार्जिन महज 5 पर्सेंट था।
हालांकि सरकारी कंपनियां भी मार्केट कैप के मामले में दमखम दिखा सकती हैं। 2011 में कोल इंडिया और ओएनजीसी जैसी सरकारी कंपनियों ने कुछ वक्त के लिए इंडियन मार्केट कैप लीग में टॉप पोजिशन पर कब्जा जमाया था। अभी 4.98 लाख करोड़ रुपये के मार्केट कैप के साथ तीसरे नंबर पर मौजूद एचडीएफसी बैंक भी 2017 की शुरुआत में कुछ समय के लिए रिलायंस से आगे निकल गया था।
अगला सितारा बैंकिंग सेक्टर से!
फिर सवाल आता है मार्केट कैप के लिहाज से तेज ग्रोथ दिखाने वाली कंपनियों के कारोबारी दमखम का। हिंदुस्तान यूनीलीवर ने सालभर में मार्केट कैप में 59.9 पर्सेंट की ग्रोथ हासिल कर 3.19 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा छू लिया और अभी यह शेयर 63 के पीई पर ट्रेड कर रहा है। 3.3 लाख करोड़ रुपये के मार्केट कैप के साथ मारुति सुजुकी ने तीन वर्षों में 33 पर्सेंट के सीएजीआर से ग्रोथ दर्ज की है। हालांकित 3.4 लाख करोड़ रुपये के मार्केट कैप के साथ इन दोनों से आगे चल रही आईटीसी के मार्केट कैप में पिछले सालभर में कोई ग्रोथ नहीं हुई है। इसने पिछले तीन वर्षों में 6 पर्सेंट के सीएजीआर से ग्रोथ दर्ज की।
बैंकिंग सेक्टर से 100 अरब डॉलर की अगली कंपनी सामने आ सकती है, खासतौर से यह देखते हुए कि एक विलय की चर्चा चल रही है। एचडीएफसी बैंक के एचडीएफसी में या आईसीआईसीआई बैंक में या कोटक महिंद्रा बैंक के एक्सिस बैंक के साथ विलय से इस सेक्टर में क्या मार्केट कैपिटलाइजेशन में तेजी की लहर आएगी? कोटक के शाह का कहना है कि जरूरी नहीं है कि ऐसे विलय से मार्केट कैप में बढ़ोतरी हो और हो सकता है कि वैल्यूएशंस घट जाएं।
दूसरों को प्रेरित करेगी TCS की ट्रिपल सेंचुरी
फर्स्ट ग्लोबल के को-फाउंडर और चीफ स्ट्रैटेजिस्ट शंकर शर्मा का कहना है कि कॉरपोरेट वर्ल्ड के इस लेवल पर पहुंचने के लिए भारतीय कंपनियों को वैश्विक पटल पर अपनी पहचान बढ़ानी होगी। शर्मा ने कहा, ‘अधिकतर बड़ी भारतीय कंपनयिां प्योर टेक्नोलॉजी स्पेस में काम नहीं करती हैं। यह भी एक वजह है कि 100 अरब डॉलर मार्केट कैप वाली कंपनियां हमारे पास नहीं हैं। पुराने दौर की कंपनियों के पास दुनियाभर में क्लाइंट्स हैं, लेकिन वे किसी टेक कंपनी की तरह तेजी से नहीं बढ़ सकती हैं।’ शर्मा ने कहा कि टीसीएस का 100 अरब डॉलर क्लब में पहुंचना किसी बैट्समैन के ट्रिपल सेंचुरी मारने के बराबर है और इसका जश्न मनाया ही जाना चाहिए।
टाटा संस के फॉर्मर डायरेक्टर आर गोपालकृष्णन का कहना है कि उन्हें काफी खुशी होती है कि टीसीएस और एचयूएल अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। टाटा ग्रुप से जुड़ने से पहले गोपालकृष्णन एचयूएल के टॉप मैनेजमेंट का भी हिस्सा थे। उन्होंने कहा, ‘टीसीएस का 100 अरब डॉलर क्लब में पहुंचना शानदार उपलब्धि है, लेकिन यह एक पारी में हासिल मुकाम है। ऐसी और पारियां खेली जाएंगी और आने वाले वर्षों में इसी बैट्समैन को जीत दर्ज करनी होगी। हालांकि एक पारी में इस ट्रिपल सेंचुरी को देखते हुए दूसरे बल्लेबाजों से भी ऐसे तिहरे शतकों का अनुमान जताना एक उम्मीद की बात है, न कि संभावित परिणाम की।’
पिरामल ने कहा कि टीसीएस ने साफ तौर पर दूसरों के लिए राह बना दी है। पिरामल ने कहा, ‘यह इस बात का शानदार उदाहरण है कि भारतीय कंपनियां किस तरह वैल्यू आधारित कल्चर, दमदार कॉरपोरेट गवर्नेंस और उद्यमिता की मजबूत भावना के साथ किस तरह ग्लोबल लेवल पर छाप छोड़ सकती हैं।’
कोटक म्यूचुअल फंड के शाह ने कहा कि टीसीएस की सफलता का असर ब्रांड इंडिया पर निश्चित तौर पर पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘जब कोई कंपनी 100 अरब डॉलर के मुकाम पर पहुंचती है तो वह अपने लिए एक ब्रांड नेम बनाना शुरू करती है। इस तरह बनाई गई ब्रांड वैल्यू का असर उस देश पर भी पड़ता है, जहां की वह कपंनी होती है। टीसीएस की इस उपलब्धि से ब्रांड इंडिया को काफी फायदा होगा। इसके अलावा कर्मचारियों का उत्साह बढ़ेगा, क्लाइंट्स को अपने साथ जोड़ना आसान हो जाएगा, ग्रोथ तेज करने में सहूलियत होगी। जब कोई कंपनी इस मुकाम पर पहुंच जाती है तो उसे क्लाइंट्स को अपने साथ लाने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती है। केवल डिलीवरी की क्वॉलिटी बनाए रखनी होती है।’
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