सैटलाइट क्रॉप मॉनिटरिंग सिस्टम से किसानों की मदद करेगी सरकार

राजस्थान के एक किसान शेर सिंह अच्छी फसल के लिए जल के देवता वरुण से प्रार्थना कर रहे हैं। साथ ही वह बंपर फसल के लिए ‘सैटलाइट भगवान’ (सैटलाइट इमेजिंग) के लिए आकाश की तरफ भी टकटकी लगाए हुए हैं।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पानी के बेहतर इस्तेमाल के लिए खेती में एक-एक बूंद से ज्यादा फसल (पर ड्रॉप, मोर क्रॉप) की पहल को प्रोमोट कर रहे हैं। उनका लक्ष्य इस साल के मॉनसून सीजन में नए सैटलाइट क्रॉप मॉनिटरिंग सिस्टम लाने पर है।

एक्सपर्ट्स की मानें तो 1.25 अरब की आबादी वाले देश में जहां के आधे कामगार खेती से जीवनयापन करते हैं, मिट्टी की नमी और फसलों के विकास का आकलन करने में रिमोट अनैलेसिस के इस्तेमाल से लागत में कटौती लाई जा सकती है और उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।

योजना के तहत किसान अपने मोबाइल फोन पर खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां जैसे, बीज के प्रकार, सही खाद के इस्तेमाल या समय पर सिंचाई आदि पा सकते हैं। हालांकि, कुछ लोगों को यह आशंका अब भी सता रही है कि प्राकृतिक और अन्य बाधाओं को देखते हुए यह कारगर साबित हो भी पाएगी या नहीं।

एक हेक्टेयर से भी कम की जमीन पर खेती करने वाले शमशेर सिंह ने कहा, ‘सैटलाइट भगवान के जरिए हम अपने लागत मूल्य में एक दहाई की कमी की उम्मीद करते हैं।’ हालांकि, सिंह ने स्वीकार किया है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि फसलों की कितना सींचा जाना चाहिए, विभिन्न खादों के मिश्रण की मात्रा क्या होनी चाहिए। उन्हें यहां तक पता नहीं कि मिट्टी के प्रकार के मुताबिक उन्हें कौन सी फसल बोनी चाहिए।

गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य के किसानों को सही फसल बोने में मदद के लिए लागू योजना के मॉडल पर ही पीएम मोदी ने राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना शुरू की। इसके अतिरिक्त सैटलाइट एनालिसिस जमीनी स्तर तक वेजिटेशन कवर, कोई फसल कैसे विकसित हो रहा है और क्या कीटनाशकों से नुकसान हो रहा है या क्या इसे और पानी की जरूरत है?

पीएम की परियोजना में शामिल मौसम विभाग के अधिकारी एन. चट्टोपाध्याय ने कहा, ‘पूरा नजरिया उत्पादन बढ़ाने के लिए सैटलाइट इमेज के साथ सॉइल हेल्थ कार्ड के तहत सूचनाएं जमा करने का है।’

दरअसल, यह पहल नॉर्थ अमेरिका में लागू की गई सूक्ष्म खेती की पद्धति पर आधारित है जो जिओ-लोकेशन तकनीक का इस्तेमाल करती है। अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में मिट्टी और फसलों की सही माप के लिए यूएवी या ड्रोन का इस्तेमाल किया जाता है।

भारत की 2 अरब हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि की आधे से ज्यादा वर्षा आधारित है जो सिंचाई के लिए किसानों को अक्सर अनिश्चित मॉनसून की कृपा पर छोड़ देती है। बाकी की कृषि योग्य भूमि पर सिंचाई के साधन हैं। सरकार अगले 3 सालों में इसे बढ़ाकर 10 गुणा करना चाहती है।

भारत सैटलाइट आधारित फसलों की भविष्यवाणी के इस्तेमाल की तैयारी कर रहा है ताकि किसानों के लिए बीमा की व्यवस्था की जा सके। मौजूदा वक्त में इन्श्योरेंस प्रॉडक्ट्स प्राथमिक फसल लोन कवर करते हैं जिसमें खेती की गतिविधियां शामिल नहीं होतीं।

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Navbharat Times

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