ब्रिटेन में रह रहे भारतीय ने नौकरी छोड़कर शुरू किया चाय का स्टॉल, ताकि दे सके शरणार्थियों को नौकरी

लंदन
ब्रिटेन में रह रहा एक भारतीय कई शरणार्थियों की जिंदगी में उम्मीद की रोशनी भर रहा है। दिल्ली में पैदा हुए और यहीं पले-बढ़े प्रवण चोपड़ा ब्रिटेन में अच्छी-खासी नौकरी कर रहे थे। यहां वह एक मैनेजमेंट कंसल्टेंट थे। एक दिन प्रणव ने टेलिविजन पर अपनी जान बचाने के लिए इराक से भागकर यूरोप जा रहे शरणार्थियों पर एक कार्यक्रम देखा। इसका उनपर ऐसा असर पड़ा कि उन्होंने फरवरी 2017 में अपनी नौकरी छोड़ दी। अब प्रणव लंदन में ही चाय की एक दुकान चलाते हैं। इस दुकान में वह शरणार्थियों को नौकरी देते हैं। यहां किसी खास देश से आए शरणार्थियों को तवज्जो नहीं दी जाती, बल्कि यहां दुनिया के कई अलग-अलग कोनों से आए रिफ्यूजी काम कर रहे हैं।

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प्रणव ने अपनी दुकान का नाम ‘चाय गरम’ रखा है। इस नाम में भले ही भारत की खुशबू है, लेकिन दुकान में काम करने वाले लोग दुनिया के कई अलग-अलग हिस्सों से ताल्लुक रखते हैं। प्रणव के पास लंदन के 2 फूड मार्केट्स में चाय के स्टॉल्स हैं। इन स्टॉल्स को रिफ्यूजी ही चलाते हैं। अभी तक प्रणव ने अपनी इस दुकान के माध्यम से 7 शरणार्थियों की मदद की है। ये रिफ्यूजी सीरिया, एरट्रिया, इराक, सूडान और पाकिस्तानी मूल के हैं।

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दक्षिणी लंदन के एक फूड मार्केट में अपने टी स्टॉल पर बैठे हुए प्रणव ने बताया कि उनका मकसद ब्रिटेन आने वाले शरणार्थियों को नौकरी देना है। यहां एक कप चाय की कीमत करीब 3 पाउंड (भारतीय मुद्रा में 250 रुपये) है। प्रणव का कहना है कि उनकी दुकान पर काम करने वाले रिफ्यूजी जब चाय सर्व करने के दौरान स्थानीय लोगों से बात करते हैं, तो उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और उनके संवाद कायम करने की कला और निखरती है। साथ ही, उन्हें काम करने का भी अनुभव मिलता है। प्रणव की योजना पूरे लंदन में इस तरह के कई टी स्टॉल शुरू करने की है। उन्होंने बताया, ‘मेरा मकसद है कि शरणार्थियों में अपना काम, अपना उद्यम शुरू करने की भावना बढ़े। ब्रिटेन में कई लोग चाय पीते हैं, लेकिन मैं चाहता हूं कि भारतीय मसाला चाय यहां ट्रेंड बन जाए।’

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प्रणव अपनी ‘चाय गरम’ में उसी तरीके से चाय बनाते हैं, जैसे उनकी परदादी बनाया करती थीं। वह बताते हैं, ‘एक सामाजिक बदलाव के लिए अपनी भारतीय जड़ों को इस्तेमाल करना अच्छा एहसास देता है।’ प्रणव चाहते हैं कि आने वाले समय में ना केवल मसाला भारतीय चाय, बल्कि शरणार्थियों के देशों में जिन-जिन तरीकों की चाय बनाई जाती है, वैसी चाय भी अपने ग्राहकों को मुहैया कराएं। सूडान से आए एक शरणार्थी अनवर अलसमानी भी प्रणव की इस दुकान पर काम करते हैं। उन्होंने बताया कि ‘चाय गरम’ ने उनकी काफी मदद की है। यहां हफ्ते में एक दिन काम करने पर उन्हें करीब 50 पाउंड (4,000 रुपये) मिलते हैं। साथ ही, उनकी अंग्रेजी में भी सुधार हो रहा है। चाय गरम के कारण अनवर के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि वह आगे चलकर अपनी एक मीडिया एजेंसी शुरू करना चाहते हैं, जो कि अफ्रीका से जुड़ी खबरें और लंदन में रह रहे शरणार्थियों की आपबीती लोगों के सामने लाएगा।

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