पेंटागन ने इंडिया रैपिड रिएक्शन सेल बनाया

वॉशिंगटन

अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने भारत के साथ सामरिक रिश्तों को मजबूती देने के लिए स्पेशल सेल बनाकर इतिहास रच दिया । इसने किसी भी देश के लिए पहला स्पेशल सेल बनाया। यह सेल भारत के साथ अमेरिका के रक्षा संबंधों में तेजी लाने और देश में हाई-टेक मिलिट्री इक्वीपमेंट के साझा विकास एवं साझा उत्पादन की प्रक्रिया को गति देगी। इस सेल की स्थापना रक्षा सचिव ऐस्टन कार्टर के पेंटागन के नेतृत्व का जिम्मा संभालने के बाद फरवरी महीने में की गई।

इंडिया रैपिड रिएक्शन सेल (आईआरआरसी) का हेड कीथ वेबस्टर को बनाया गया है। वह रक्षा विभाग के अंडर सेक्रटरी (ऐक्विजिशन, टेक्नॉलजी और लॉजिस्टिक्स) के इंटरनैशनल कॉपरेशन ऑफिस के डायरेक्टर हैं। पेंटागन के अंदर इस पहले विशेष सेल में अभी सात लोग काम कर रहे हैं, जो अमेरिकी रक्षा विभाग के अलग-अलग विंग का प्रतिनिधत्व करते हैं। कार्टर के अधीन भारत-अमेरिकी रक्षा संबंधों को नए नजरिए से देखते हुए अधिकारियों का कहना है कि पेंटागन स्थित इंडिया रैपिड रिएक्शन सेल में काम करने के प्रति दिलचस्पी दिखाने वाले कुछ लोग और हैं जो यहां अपनी पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं।

वेबस्टर ने कहा, ‘इंडिया रैपिड रिएक्शन सेल का मकसद भारत-अमेरिका डिफेंस ट्रेड ऐंड टेक्नॉलजी इनिशटिव्स के तहत उठाए जा रहे तमाम कदमों पर काम करने का है। दोनों पहल जनवरी महीने में दिल्ली में अमेरिकी राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमंत्री के साझा बयान में सामने आए थे। इस बयान में समय पर तेज गति से आगे बढ़ने पर जोर दिया गया था और मेरी नजर में इसके लिए क्रियान्वयन प्रक्रिया को गति देने के लिए समर्पित समर्थन की जरूरत है।’ उन्होंने कहा, ‘हम कुछ नई पहलों पर जोर दे रहे हैं और ऑपरेशन टेंपो बिल्कुल भी कमजोर नहीं पड़ रहा।’

आने वाले महीनों में कई उच्चस्तरीय बातचीत होनी है। इनमें भारत के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का पेंटागन से बातचीत भी शामिल है। वहीं, इस महीने न्यू यॉर्क में होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक से इतर ओबामा और मोदी की भी मुलाकात होगी। तब रक्षा और सामरिक रिश्ते दोनों के बीच बातचीत के मुख्य बिंदु होंगे। वेबस्टर ने बताया कि इंडिया रैपिड रिएक्शन सेल डिफेंस ट्रेड ऐंड टेक्नॉलजी इनिशटिव्स (डीटीटीआई) प्रॉजेक्टों को गति देने का माध्यम है। इसने साझा उत्पादन और विकास के लिए भारत को कुछ नए प्रस्ताव भेजने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। मोबाइल हाइड्रोइलेक्ट्रिक इनशटिव्स और अगली पीढ़ी के लिए कुछ पहलों पर बातचीत कर निष्कर्ष पर पहुंचने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, ‘अमेरिका और भारत के बीच इस तरह के कई समझौते पहले भी हो चुके हैं और आंकड़ों के मुताबिक ऐसे समझौतों के पूरा होने में औसतन डेढ़ से तीन साल तक का लंबा वक्त लग जाता है। इस समझौते में हमने तो अपनी ओर से तीन महीने ही लिया। लेकिन, भारत की ओर से दस्तावेज पर पिछले महीने दस्तखत किया गया।’

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