दलित हिंसा: पुलिस कार्रवाई फिर सवालों में, नामजदों ने सौंपे बेगुनाही के सबूत
|दलित आरक्षण के मुद्दे को लेकर दो अप्रैल को बुलाए गए भारत बंद के दौरान वेस्ट यूपी में भड़की हिंसा में नामजदगी को लेकर पुलिस की कार्रवाई पर एक बार फिर बड़े सवाल उठने लगे हैं। पुलिस ने जिन लोगों को नामजद कर हिंसा फैलाने के आरोप लगाए हैं, उनके परिजनों ने पुलिस अफसरों के सामने बेगुनाही के सूबत पेश किए हैं। हिंसा के वक्त आरोपी बनाए गए दलितों की मौके पर मौजूदगी नहीं होने तक का दावा तक किया गया है। अकेले मेरठ में ही करीब 135 नौजवानों के परिजनों ने पुलिस को बेगुनाही के दस्तावेज सौंपकर केस खत्म करने की मांग की है। पुलिस अब इनकी जांच कर सही पाए जाने पर केस से नाम हटाने का काम करेगी।
दो अप्रैल के दलित समाज के कई संगठनों ने सोशल मीडिया पर भारत बंद बुलाया था। इस बंद के दौरान वेस्ट यूपी के आगरा, मथुरा, हापुड़, मेरठ, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर में हिंसा हुई थी। जहां आगजनी, तोड़फोड़, जाम, फायरिंग की घटनाएं सामने आई थीं और मेरठ में तो पुलिस चौकी फूंक दी गई थी। मेरठ और मुजफ्फरनगर समेत कई जगह लोगों की जान गई थी और कई जिलों में विरोध प्रदर्शन हुए थे।
पुलिस ने इस मामले में वेस्ट यूपी के जिलों में बीएसपी समर्थित नेताओं, भीम आर्मी के वर्करों के साथ बड़ी तादाद में दलितों को नामजद किया था। साथ ही कई सौ लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था। पुलिस की नामजदगी और गिरफ्तारी पर पहले दिन से ही विवाद खड़ा हुआ है। मेरठ में तो बीजेपी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी के ऐतराज के बाद एक बेगुनाह को पुलिस को केस खत्मकर जेल से निकलवाना पड़ा था। तीन युवाओं की बेगुनाही के सूबत मिलने पर उनको भी रिहा कराने की कोशिश चल रही है। पुलिस पर लगातार फर्जी नामजदगी और गिरफ्तारी के नाम पर उत्पीड़न के आरोप लगने के बाद एससी-एसटी आयोग ने दखल दिया और शासन स्तर पर बात पहुंची। उसके बाद बिना जांच के गिरफ्तारी रोक दी गई।
सूत्रों के मुताबिक पुलिस कार्रवाई को आईना दिखाते हुए 135 नामजदों की तरफ से पुलिस अफसरों को बेगुनाही के सबूत दिए गए हैं। जिसमें कुछ ने हिंसा के वक्त मौके पर नहीं होने का दावा किया तो वहीं कुछ ने खुद को स्टूडेंट और नौकरीपेशा बताते हुए अपने शिक्षण और दूसरे संस्थान की अटेंडेंस शीट पेश की हैं। कुछ ने जिस जगह उनकी मौजूदगी रही और काम कर रहे थे या काम के लिए गए थे, वहां की सीसीटीवी फुटेज पलिस अफसरों को दी हैं। इस तरह के सबूत आने के बाद अब पुलिस अफसर भी हैरान हैं।
दरअसल, नामजदगी के वक्त आरोप लगे थे कि गैरदलित अपनी रंजिश के चलते पुलिस से मिलकर दलितों के नाम एफआईआर में जुड़वा रहे हैं। इसको लेकर मेरठ के एक गांव में एक दलित युवक की हत्या भी कर दी गई थी। एसपी क्राइम शिवराम यादव का कहना है कि सौ से ज्यादा नामजदों के परिजनों ने बेगुनाही के सबूत पेश किए गए हैं। दौराना सीओ के पास भी बीस से ज्यादा ऐसे सबूत पहुंचे हैं। अब इनकी सच्चाई का परीक्षण कराया जाएगा। उसके बाद आगे की कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
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