डॉक्टर भाई अमेरिका में रेस जीतने वाले पहले भारतीय बने

नासिक

महेंद्र और हितेंद्र महाजन नामक दो डॉक्टर भाइयों ने अमेरिका में नया इतिहास रच दिया है। यह दोनों अमेरिका में आयोजित अल्ट्रामैराथन रेस पूरी करने वाले पहले भारतीय बन गए हैं। 4800 किलोमीटर की इस साइकल रेस को रेस अक्रॉस अमेरिका (RAAM) नाम से जाना जाता है।

इन दोनों ने यह रेस ‘दो टीमों’ की कैटिगरी और नौ दिनों के निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरा कर लिया। इन दोनों ने यह रेस पूरा करने में 8 दिन और 14 घंटे का समय लिया। उनकी कैटिगरी में तीन और टीमें रेस पूरा नहीं कर पाई।

महेंद्र (39) एक डेंटिस्ट हैं जबकि हितेंद्र (44) एक एनेस्थीसियोलॉजिस्ट हैं। उन्होंने 20 जून को शुरू हई इस रेस के 34वें संस्करण में भाग लिया था, इसमें दुनिया भर की 130 और टीमों ने भी भाग लिया। इसमें टीमों को सोलो, दो की टीम, चार की टीम और आठ की टीम की कैटिगरीज में बांटा गया था। इस रेस को पूरा करने का समय नौ दिन था लेकिन महाजन भाइयों ने इसे 10 घंटे पहले ही बिना किसी पेनल्टी के पूरा कर लिया।

इससे पहले RAAM के संस्करण में भाग लेने वाले दो अन्य भारतीय थे बेंगलुरु के समीम रिजवी और अलीबाग के सुमित पटेल, जिन्होंने सोलो कैटिगरी में भाग लिया था। रेस अमेरिका के पूर्व से पश्चिम तटों-कैलिफोर्निया से मेरीलैंड के बीच एक बहुत ही मिश्रित भू-भाग पर होती है। जमीन के साथ ही तापमान भी बदलता रहता है, जोकि 53 से लेकर 8 डिग्री सेंटीग्रेड तक होता है।

15 सपॉर्ट क्रू मेंबर्स के साथ वहांग गए महाजन भाई इस रेस में भाग लेने वाले नासिक के पहले और देश के तीसरे व्यक्ति हैं। उन्होंने टीम इंडिया के नाम से रजिस्ट्रेशन कराया था। उन्होंने इस रेस में कल्पतरु नामक एनजीओ के लिए हिस्सा लिया जोकि नासिक में आदिवासियों के स्वास्थ्य और आई केयर के लिए काम कर रही है। एनजीओ फ्री ऑपरेशन के लिए फंड जुटा रही है।

इस कैटिगरी में चार टीमें थीं-दो अमेरिका से, एक स्विट्जरलैंड से और भारत से महाजन भाई। पहली तीनों टीमों ने 1 हजार से 869 किलोमीटर के बीच साइकलिंग करके मुकाबला छोड़ दिया।

नासिक के साइकलिस्ट विशाल उगले ने कहा, पूरे 4800 किलोमीटर के सफर के दौरान भौगोलिक स्थितियां बहुत अलग थी। पहले दो दिन हमने 43-44 डिग्री के उच्च तापमान का सामना किया। इसके बाद कुछ जगहों पर बर्फबारी हो रही थी और हमने बाकी दिनों में मरुस्थल से यात्रा की। क्रू मेंबर्स को अक्सर महाजन भाइयों के चेहरों से पसीन पोंछना पड़ता था।

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