आजीविका के लिए अफगानिस्तान में अफीम की खेती कर रहे किसान

कंधार अफगानिस्तान में गेहूं की कम कीमत, बेरोजगारी और गरीबी ने क्षेत्र के कई किसानों को गेहूं की खेती छोड़ अफीम की खेती अपनाने के लिए मजबूर कर दिया है। कुछ ऐसी ही विवशता हाल में दक्षिणी प्रांत में अपने अफीम के खेत में मिले बुजुर्ग किसान असदुल्लाह ने जाहिर की। असदुल्लाह(65) ने समाचार एजेंसी से कहा, ‘अफीम की खेती करना और अफीम बेचना मेरे लिए परिवार का पेट पालने व उसका सहयोग करने का एकमात्र रास्ता है।’

उन्होंने कहा कि गेंहू की कम कीमत, गरीबी और बेरोजगारी ने उन्हें गेहूं की जगह खसखस को देने के लिए मजबूर कर दिया। असदुल्लाह ने अपनी मजबूरी समझाते हुए कहा, ‘सच कहूं तो मुझे अफीम की खेती से नफरत है। यह एक जहर है, जो लोगों की जान लेता है। मादक पदार्थ या अन्य अवैध ड्रग्स उगाना और उन्हें बेचना इस्लामिक कानून में हराम है।’

युद्धग्रस्त अफगानिस्तान बहुत बड़े पैमाने पर अफीम की खेती करने वाला देश है। यह कथित तौर पर देश में हेरोइन के निर्माण में प्रयुक्त होने वाले कच्चे माल की करीब 90 फीसदी आपूर्ति करता है। अफगानिस्तान में पूर्व में तालिबान के चंगुल में रहे दक्षिणी कंधार और हेलमंड प्रांत अवैध मादक पदार्थों की बड़े पैमाने पर खेती करने वाले इलाके हैं।

बुझे-बुझे से असदुल्लाह ने कहा, ‘मैं अफीम की खेती छोड़ने और वैद्य फसलें जैसे गेहूं, चावल, तरबूज-खरबूजा व केसर की खेती करने के लिए तैयार हूं, लेकिन अगर सरकार मेरी केसर खरीदने, मेरे कृषि उत्पादों को बेचने के लिए एक बाजार तलाशने या मेरे बेटों को एक नौकरी दिलाने में मदद करे।’

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