Kaagaz Review: सिस्टम की बैंड बजाकर ज़िंदा हुए एक जुनूनी शख्स की कहानी में पंकज त्रिपाठी ने फूंकी जान

Kaagaz Review आंखों के सामने खड़े हाड़-मांस के आदमी का पूरा वजूद सिर्फ़ एक कागज़ पर टिका हो। कागज़ नहीं तो आदमी नहीं। जब सिस्टम एक सीधे-सादे आदमी की ज़िंदगी को मज़ाक बना दे तो वो अपने हक़ के लिए कितनी दूर तक जा सकता है?

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