पुलिस पर अपना कंट्रोल चाहती है दिल्ली सरकार : विपक्ष
|दिल्ली सचिवालय
दिल्ली सरकार ने सोमवार को 2 अहम बिल विधानसभा में पेश किए। द दिल्ली राइट ऑफ सिटिजन टु टाइम बाउंड डिलिवरी ऑफ सर्विसेज अमेंडमेंट बिल-2015 और द कोड ऑफ क्रिमिनल प्रॉसिजर (दिल्ली अमेंडमेंट) बिल, 2015 बिलों को पेश किया गया लेकिन विपक्ष ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं।
विपक्ष ने नेता विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि सीआरपीसी अमेंडमेंट बिल को नियमों के खिलाफ जाकर पेश किया गया है। उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि दिल्ली पुलिस को अपने कंट्रोल में लाया जाए और इसके लिए नियमों की परवाह भी नहीं की जा रही है।
विपक्ष के नेता ने कहा कि दिल्ली गवर्नमेंट ऐक्ट के सेक्शन 45 के अंतर्गत उपराज्यपाल की इजाजत के बाद ही इस बिल को सदन में लाया जाना चाहिए। संविधान की धारा 239ए ए के तहत यह दिल्ली सरकार के कार्यक्षेत्र के बाहर का मामला है। यदि संशोधित बिल में निहित अधिकार दिल्ली सरकार के मैजिस्ट्रेट को दिए जाते हैं तो उन्हें पुलिस के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का अधिकार मिल जाएगा। दिल्ली सरकार ऐसे मामलों में दखल देने का प्रयास कर रही है, जिसके लिए उसके पास अधिकार ही नहीं है। विपक्ष के नेता ने कहा कि सरकार चाहती है कि दिल्ली पुलिस पर कार्रवाई करने का अधिकार उसे मिल सके। सरकार संविधान के खिलाफ जाकर पुलिस को अपने विधायी और कार्यकारी नियंत्रण में लाना चाहती है।
विपक्ष ने सर्विसेज से जुड़े बिल के बारे में कहा कि यह बिल बिना तैयारी के विधानसभा में लाया गया है। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित बिल के सेक्शन 7 में नागरिकों को समय पर सर्विसेज ना मिल पाने की स्थिति में मुआवजा देने का प्रावधान है। अब तक सर्विसेज में देरी होने पर 10 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से और अधिकतम 200 रुपये का भुगतान किया जाता है। इसे संशोधित करने के लिए यह बिल लाया जा रहा है लेकिन सरकार ने यह नहीं बताया है कि नए बिल के हिसाब से कितना मुआवजा दिया जाएगा। सरकार ने अभी तक दरें निर्धारित नहीं की है और जब दरें ही तय नहीं हैं तो फिर इस संशोधन को लाने का क्या मतलब है?
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