स्क्रैप डीलर से मेटल किंग बने अनिल अग्रवाल का विवादों से है पुराना नाता

अरिजित बर्मन
खनन और प्राकृतिक संसाधनों के कारोबार से जुड़ी कंपनियों पर अकसर सामुदायिक और पर्यावरण के हितों को नजरअंदाज कर मुनाफा कमाने के आरोप लगते रहे हैं। भारत में भी धातुओं और खनन के कारोबार से अरबों रुपये कमाने वाली कंपनियां ऐसे आरोपों से अछूती नहीं रही हैं। कुमार मंगलम बिड़ला का नाम कोलगेट विवाद में आया था, जबकि एस्सार ग्रुप के रुइया से लेकर गौतम अडानी तक विवादों में घिर चुके हैं। इसके अलावा सज्जन जिंदल भी कर्नाटक लोकायुक्त की खनन को लेकर रिपोर्ट आने के बाद विवादों में आ गए थे।

अब इन दिनों ऐसे ही एक विवाद में नाम आया है, वेदांता ग्रुप के चेयरमैन अनिल अग्रवाल का। उनकी कंपनी वेदांता को तमिलनाडु में विरोध प्रदर्शन के चलते अपनी स्टरलाइट यूनिट को बंद करना पड़ा है। एक स्क्रैप डीलर से लेकर वेदांता जैसी मल्टिनैशनल कंपनी के संस्थापक तक का सफर तय करने वाले अग्रवाल की कामयबी कहानी बेहद रोचक है।

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अनिल अग्रवाल कई राष्ट्रवादी मुहिमों से जुड़ रहे हैं, सरकारी कैंपेनों को फंडिंग करते रहे हैं। लाखों डॉलर वह बेटी बचाओ अभियान जैसे सरकारी कार्यक्रमों के लिए खर्च करते रहे हैं। फिर भी अकसर विवादों से भी उनका नाम जुड़ता रहा है। लांजीगढ़ से लंदन तक और अब तूतीकोरिन तक वेदांता की कई मसलों को लेकर निंदा होती रही है। ब्रिटिश सरकार, राहुल गांधी, पॉप आइकॉन्स, ग्रीन लॉबिस्ट से लेकर संवेदनशील पूंजीवादी समूहों तक के वह निशाने पर रहे हैं।

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तमिलनाडु के तूतीकोरिन, ओडिशा के लांजीगढ़ और जाम्बिया के कोनकोला माइंस में खनन की परियोजनाओं को लेकर अकसर वेदांता को आलोचना झेलनी पड़ी है और विरोध का सामना करना पड़ा है। हालांकि उनके ओडिशा के झारसुगडा और हिंदुस्तान जिंक के उनके कारोबार और यहां तक केयर्न एनर्जी के बारे में हमने बहुत ज्यादा सुना नहीं होगा। अवैध खनन के आरोपों से पहले वह चुपचाप बड़ी इंजस्ट्री चलाते रहे हैं। हमेशा अंडरडॉग कहे जाने वाले अनिल अग्रवाल ने स्क्रैप डीलर के तौर पर कारोबार की शुरुआत की थी। एक दशक पहले वह बिड़ला के साम्राज्य के लिए चुनौती बनकर उभरे थे और अब वह ग्लोबल मार्केट में अपनी पहचान बनाने के अग्रसर हैं।

हालांकि ओडिशा, तमिलनाडु समेत कई राज्यों में सामुदायिक हितों को नजरअंदाज करने के आरोप उनकी कंपनी पर लगते रहे हैं। तूतीकोरिन भी कुछ अलग नहीं है, 1994 तक तूतीकोरिन प्रॉजेक्ट की कड़ी स्क्रूटनी होती थी, लेकिन फिर धीरे-धीरे यह ढीला होता गया। इंडस्ट्री फ्रेंडली कहे जाने वाले 3 राज्यों ने अनिल अग्रवाल को रिजेक्ट कर दिया था, लेकिन फिर तमिलनाडु की चीफ मिनिस्टर जयललिता ने उन्हें आमंत्रण दिया। 2003 में वेदांता के बोर्ड मेंबर्स का खुद मानना था कि स्वतंत्र रूप से ग्रीन ऑडिट होना चाहिए। ऐसे में वेदांता को अपने दावों के विपरीत सामुदायिक हितों के प्रति सचेत रहना चाहिए।

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