सरकार ने डिफॉल्टिंग कंपनियों के 2 लाख और निदेशकों को अयोग्य घोषित किया

रुचिका चित्रवंशी/ विनय पांडे, नई दिल्ली
कॉरपोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री ने उन डिफॉल्टिंग कंपनियों के दो लाख और निदेशकों को पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया है जिन्होंने पिछले तीन साल या ज्यादा समय से अपनी फाइनैंशल रिटर्न्स नहीं भरे हैं। इससे अयोग्य घोषित होने वाले निदेशकों की कुल संख्या तीन लाख से ज्यादा हो गई है। साथ ही 10,000 और कंपनियों का रजिस्ट्रेशन कैंसल कर दिया गया है। ये निदेशक दूसरी कंपनियों के बोर्ड में शामिल नहीं रह पाएंगे और उनको जल्द इस्तीफा देना होगा जिससे दूसरी कंपनियां भी खासा प्रभावित हो सकती हैं।

कंपनी मामलों के राज्य मंत्री पी पी चौधरी ने हमारे सहयोगी ईटी से बातचीत में कहा, ‘मौजूदा कानून में अपील का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए सरकार ऐसी अपील के रिव्यू पावर के इस्तेमाल के बारे में सोच रही है। कानूनी तौर पर ये निदेशक अयोग्य हैं लेकिन हमें यह देखना होगा कि कानून के किस प्रावधान के तहत इसकी जांच की जाएगी। हमें इसके लिए एक नियम बनाने की जरूरत है।’

सरकार ने दो लाख और कंपनियों का नाम रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज वाली लिस्ट से हटा दिया है, जो नियमों का पालन करने में नाकामयाब रही हैं। सरकार ने गलत तरीके से फंड निकासी पर रोकथाम के लिए इन कंपनियों के बैंक खातों को फ्रीज कर दिया है। चौधरी ने कहा, ‘यह कवायद नोटबंदी का हिस्सा है। अब इसको रोकने की कूबत किसी में नहीं थी। यह अर्थव्यवस्था के लिए उत्प्रेरक का काम करेगी।’

कैबिनेट में हुए हालिया फेरबदल में मंत्री बने चौधरी ने कहा कि इन कंपनियों की व्यापक डेटा माइनिंग के बाद मनी ट्रेल का पता लगाया जाएगा। सरकार उन मामलों को प्राथमिकता से देखेगी, जहां बड़े पैमाने पर कैश मूवमेंट का पता चलेगा। चौधरी ने इन आलोचनाओं को खारिज कर दिया कि कार्रवाई पुराने मामलों में भी हो रही है। चौधरी ने कहा, ‘कानून पूर्वप्रभावी नहीं रहा। कंपनियों के पास रिटर्न भरने के लिए दो साल का वक्त था। उनके पास पर्याप्त मौका था।’ मुखौटा कंपनियों की खोज का मामला अब तक उन कंपनियों तक सीमित रहा है, जो पिछले तीन या ज्यादा साल से रिटर्न्स भरने में नाकामयाब रही हैं।

सरकार होल्डिंग कंपनियों का स्ट्रक्चर और फंड फ्लो के बारे में जानने के लिए जल्द उन कंपनियों के पीछे पड़ेगी जो इस नियम का पालन करती रही हैं। चौधरी ने कहा कि सरकार की इस कवायद का मकसद कॉरपोरेट स्ट्रक्चर में भरोसा बहाल करना और देश में बिजनस करना आसान बनाना है। उन्होंने कहा, ‘हम घबराहट पैदा नहीं करना चाहते। कॉरपोरेट स्ट्रक्चर से भरोसा खत्म हो रहा था। हम कॉरपोरेट स्ट्रक्चर में दखल देना नहीं बल्कि उसमें निवेशकों का भरोसा बढ़ाना चाहते हैं।’

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