लॉ कमिशन के 16 सवालों की लिस्ट फरेब है, सवाल एकतरफा हैं: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

दिल्ली
विभिन्न धर्माें में महिला विरोधी कुरीतियों को हटाने के मकसद से लॉ कमिशन ने आम नागरिकों की राय मांगी थी। इसमें ट्रिपल तलाक, बहु विवाह और दूसरी प्रथाओं को लेकर 16 सवालों के जरिए जनता की राय मांगी गई थी। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (MPLB) इस बात पर लॉ कमिशन से बेहद नाराज है। MPLB का कहना है कि इस देश में कई धर्मों और संस्कृतियों के लोग रहते हैं और सभी को सम्मान दिया जाना चाहिए।

माना जा रहा है कि लॉ कमिशन ने यह कदम यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की दिशा में उठाया है। हालांकि, एमपीएलबी कहना है कि यूनिफॉर्म समान नागरिक संहिता इस देश के लिए अच्छा फैसला नहीं है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा कि लॉ कमिशन के 16 सवालों की लिस्ट धोखाधड़ी है। बोर्ड से जुड़े मौलाना वली रहमानी ने कहा कि इसमें मौजूद सवाल एकतरफा हैं और यूनिफॉर्म सिविल कोड इस देश में संभव नहीं है।

वली ने मुस्लिमों के साथ भेदभाव का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि मुस्लिमों ने भी इस देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी है लेकिन उनकी भागीदारी को हमेशा नजरअंदाज कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि इस देश का संविधान सभी को अपने धर्म को मानने की छूट देता है। रहमानी ने सवाल किया कि अमेरिका में हर कोई पर्सनल लॉ का अनुसरण करता है फिर हमारा देश ऐसा क्यों नहीं करना चाहता? रहमानी ने कहा कि यह मजहबी आजादी के खिलाफ है। यह मजहब को नजरअंदाज करके एक सोच को लागू करने जैसा है। रहमानी ने कहा कि उनका संगठन लॉ कमिशन के सवालों को बायकॉट करेगा।

वहीं, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुसलमीन यानी एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी प्रश्नावली में पूछे गए 16 सवालों को यूनिफॉर्म सिविल कोड के पक्ष में होने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इसे और भी ऑब्जेक्टिव होना चाहिए था। ओवैसी ने कहा कि हमारी पार्टी ने लॉ कमिशन की प्रश्नावली का जवाब देने का फैसला किया है।

क्या है मामला?
दरअसल, लॉ कमिशन ने 16 सवालों की एक लिस्ट तैयार की है, जिनपर लोगों के जवाब इकट्ठे किए जाएंगे। इन सवालों में बहुविवाह, ट्रिपल तलाक जैसी परंपराओं को खत्म करने को लेकर राय मांगी गई है। मुसलमानों में पुरुष को चार शादियां करने की छूट है। कमिशन का सवाल है कि क्या इस छूट को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए या फिर इस पर किसी तरह की लगाम लगाई जाए? यह भी पूछा गया है कि क्या तीन तलाक व्यवस्था को खत्म कर देना चाहिए? सवालों में ‘मैत्री करार’ का भी जिक्र है। ‘मैत्री करार’ कानूनी रूप से अवैध है, फिर भी गुजरात में यह काफी प्रचलन में है। इसके तहत एक शादीशुदा हिंदू पुरुष स्टैंप पेपर पर दोस्ती का करार करके अन्य महिला को साथ रहने के लिए घर ले आता है। सवालों की लिस्ट में हिंदू महिलाओं के संपत्ति के अधिकार को भी जगह दी गई है। आयोग ने जनता से सुझाव मांगे हैं कि किस तरह हिंदू महिलाओं के इस अधिकार को सुनिश्चित किया जाए। फिलहाल स्थापित प्रचलन के मुताबिक, बेटे ही संपत्ति के वारिस मान लिए जाते हैं।

किस बात पर टकराव?
मुस्लिम पर्सनल बोर्ड यह कहते आया है कि ट्रिपल तलाक एक पर्सनल लॉ है और इसमें केंद्र बदलाव नहीं कर सकता। केंद्र बोर्ड के नजरिए को खारिज करता रहा है। उसका कहना है कि ट्रिपल तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला जैसी परंपराओं को धर्म का जरूरी हिस्सा नहीं माना जा सकता। इस वजह से इन रीतियों को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत नहीं रखा जा सकता। वहीं, लॉ कमिशन का कहना है कि पूछे गए सवाल विभिन्न धर्मों में जारी धार्मिक रीति-रिवाजों पर है, सिर्फ इस्लाम पर नहीं।

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