‘लुई वितां और जारा में कार्ड स्वाइप करने वालों को बैंक सब्सिडी क्यों दें’

मुंबई
बैंक ग्राहकों से पैसा चूसने वाले सूदखोर महाजन नहीं हैं, लेकिन जो लोग बेहतर सर्विस चाहते हैं, उन्हें इसकी कीमत चुकाने को भी तैयार रहना चाहिए। एचडीएफसी बैंक के सीईओ आदित्य पुरी ने यह बात ऐसे वक्त में कही है, जब बैंकों पर गरीब तबके को फ़ाइनैंशल सिस्टम में लाने का दबाव बना हुआ है।

देश में किसी बैंक के सबसे अधिक समय से सीईओ रहे पुरी ने यह भी कहा कि सरकार ने कोल, टेलिकॉम और पावर सेक्टर्स की समस्याएं सुलझाई हैं और अक्टूबर-दिसंबर 2016 क्वॉर्टर में मजबूत जीडीपी ग्रोथ से पता चलता है कि नोटबंदी को लेकर जो डर बना हुआ था, वह गलत था। पुरी ने कहा कि सभी बैंकिंग ट्रांजैक्शंस पर सब्सिडी देने का कोई मतलब नहीं है। अमीर लोग लुई वितां और जारा के स्टोर्स में मोटी रकम खर्च करते हैं। इससे बैंकों की गरीबों को सर्विस देने की क्षमता प्रभावित होती है, जो अभी बैंकिंग सिस्टम का हिस्सा ही बन रहे हैं।

उन्होंने इकनॉमिक टाइम्स को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘आप ओबेरॉय होटल नहीं जाते। आपकी दिलचस्पी तो महेश लंच होम के रेट्स में होती है।’ उन्होंने कहा, ‘मैं एक बात साफ करना चाहता हूं कि हम सूदखोरी नहीं कर रहे हैं। अगर आप प्रीमियम प्रॉडक्ट्स चाहते हैं तो आपको उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। देश में एक ऐसा वर्ग है, जिससे कोई चार्ज नहीं लेना चाहिए। हम इस बात से सहमत हैं।’

बैंकों ने हाल में एटीएम ट्रांजैक्शंस और कैश डिपॉजिट की एक लिमिट तय की है, जिसकी आलोचना हो रही है। खासतौर पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की, जिसने 2012 में वापस लेने के बाद मिनिमम बैलेंस अमाउंट मेंटेन नहीं करने पर 1 अप्रैल से जुर्माना वसूलने की बात कही है। शॉपिंग के बाद दुकानदारों के यहां डेबिट और क्रेडिट कार्ड से पेमेंट करने पर लगने वाले चार्ज का भी विरोध हो रहा है। नोटबंदी के बाद यह विरोध बढ़ा है। सरकार के 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों को अमान्य घोषित किए जाने के बाद से कैश की सप्लाई नोटबंदी के पहले वाले लेवल तक नहीं पहुंची है। इसके कारण और सरकार के जोर देने से देश में डिजिटल पेमेंट्स में बढ़ोतरी हुई है।

पुरी ने कहा, ‘अगर मैं टर्मिनल्स लगा रहा हूं और उन्हें यह मुफ्त में मिलता है तो क्या आप यह कह रहे हैं कि मुझे लुई वितां या पैंटालून या ताज होटल्स को सब्सिडी देनी चाहिए? उनकी बिक्री बढ़ रही है क्योंकि अमीर लोग वहां कार्ड्स स्वाइप कर रहे हैं। मुझे ऐसे लोगों को क्यों सब्सिडी देनी चाहिए।’ नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट्स को बढ़ावा मिला है, साथ ही इसका इकनॉमिक ग्रोथ पर भी बुरा असर नहीं हुआ है। लेकिन यह भी सच है कि इनफॉर्मल यानी टैक्स से बाहर रहने वाले बिजनेस पर नोटबंदी की चोट अधिक पड़ी है।

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