लाखों की नौकरी छोड़ इंडस्ट्री में आए:सब कुछ लुटा, प्रेग्नेंट बीवी को बस में धक्के खाने पड़े; ‘मिर्जापुर’ लिखने के बाद बदली किस्मत
|‘मैंने IIT BHU से इंजीनियरिंग की है। इसके बाद सिटी कॉर्प और कोका कोला जैसी कंपनियों में काम किया। सालाना 9-10 लाख रुपए मिलते थे। फ्लाइट से सफर करता था, सेक्रेटरीज थे, सुंदर घर था और सारी ऐशो आराम की चीजें थीं। लेकिन डायरेक्टर बनने का भूत ऐसा सवार था कि यह सारी चीजें मेरे जीवन से गायब हो गईं। वक्त ऐसा आ गया कि ऑटो तक के पैसे नहीं थे। बस से सफर करना पड़ता था। प्रेग्नेंट बीवी भी गुजारे के लिए बस में धक्के खाते हुए ऑफिस जाती थी, लेकिन देर से ही सही लाइफ पटरी पर वापस आते हुए दिखती है।’ यह बातें पुनीत कृष्णा हंसते हुए कह रहे हैं, लेकिन उनकी आंखों में दर्द साफ दिखाई दे रहा है। पुनीत फेमस वेब सीरीज मिर्जापुर सीजन 1 और सीजन 2 के राइटर हैं। हालिया वेब शो त्रिभुवन मिश्रा CA टॉपर की भी कहानी इन्होंने ही लिखी है। मुंबई स्थित दैनिक भास्कर के ऑफिस में पुनीत से हमारी मुलाकात हुई। थोड़ी औपचारिकता के बाद हमने उनसे पहला सवाल किया- इंजीनियर थे, फिल्म इंडस्ट्री में कैसे आना हुआ? पुनीत हंसते हुए कहते हैं- घर पर हमेशा पढ़ाई को लेकर मोटिवेट किया जाता था, लेकिन पापा ही हमें फिल्में दिखाने के लिए ले जाते थे। शायद यही वजह रही कि मैं हमेशा खुद को फिल्मों के करीब पाया। 11वीं के बाद फिल्मों से नाता छूट सा गया। पूरा फोकस पढ़ाई पर था। 12वीं के बाद मेरा दाखिला IIT BHU में हो गया। यहां पर मैं कल्चरल डिपार्टमेंट से जुड़ा। मुझे याद है कि मैंने चौथे साल में एक प्ले बनाया, जिसने पहला स्थान हासिल किया था। राइटिंग और डायरेक्शन मैंने ही किया था। इस जीत को हम सभी दोस्त सेलिब्रेट कर रहे थे। शराब पीकर सब झूम रहे थे। तभी एक दोस्त ने कहा- पुन्नी, तुम्हारे जैसे ही लोग फिल्में बनाते होंगे। तुम क्यों ट्राई नहीं करते। उसने यह बात नशे में इमोशनल होकर कही थी, लेकिन मैंने इसको सीरियसली ले लिया। इसके बाद मेरी यही जद्दोजहद थी कि मैं किसी भी तरह मुंबई चला जाऊं। फिल्मों में आने के लिए 10-11 लाख रुपए सालाना की नौकरी छोड़ी, साफ-सफाई का काम किया कॉलेज से पास आउट होने के बाद पुनीत ने सिटी कॉप, बी स्कूल जैसी जगहों पर काम किया था। फिर उनकी नौकरी कोका कोला में लगी और इसी सिलसिले में उनका मुंबई आना हुआ। इस बारे में पुनीत कहते हैं- कोका कोला में मैंने 4 साल नौकरी की। काम के साथ थिएटर करने लगा, जहां सीखने के लिए साफ-सफाई का काम भी करता था। बीतते वक्त के साथ फिल्मों के लिए मेरा जुनून बढ़ता जा रहा था। आखिरकार अपने ख्वाब को सच करने के लिए मैंने 10-11 लाख रुपए सालाना की नौकरी छोड़ दी और आम स्ट्रगलर्स की तरह संघर्ष करने लगा। नौकरी छोड़ी तो रिश्तेदारों से मिले ताने पुनीत आगे कहते हैं- ईस्ट यूपी में आज भी इंजीनियर, डॉक्टर और IAS की नौकरी को सबसे ज्यादा महत्ता दी जाती है। जब मैंने फिल्मों के लिए नौकरी छोड़ने की बात परिवार को बताई, तो घर में हाहाकार मच गया। रिश्तेदारों में तरह-तरह की बातें बनने लगीं। मां ने तो सपोर्ट किया, लेकिन पापा थोड़े नाराज थे। हालांकि, उन्होंने भी कभी खुलकर इसका विरोध नहीं किया। प्रेग्नेंट बीवी को भी बस में धक्के खाने पड़े, उन्हीं के पैसों से घर चलता था नौकरी छोड़ने के बाद सबसे खराब दौर क्या था? पुनीत ने कहा- मेरे एक दोस्त हैं, आशीष। उनकी डायरेक्टर राजकुमार हिरानी से जान-पहचान थी। उन्हीं की बदौलत मेरा हिरानी सर से मिलना हुआ। पैशन देखकर उन्होंने मेरा कॉन्टैक्ट नंबर ले लिया और जल्द ही मिलने का आश्वासन देकर मुझे वापस भेज दिया। मैं 6 महीने तक बेरोजगार रहा। धीरे-धीरे सारी जमा-पूंजी खत्म हो गई। हालात ऐसे थे कि खुद को बिजी रखने के लिए दिन में एक अखबार 4-4 बार पढ़ता था। काम मांगने जाने के लिए ऑटो तक के पैसे नहीं थे। बस से ट्रैवल करता था। इस बुरे हालात में पत्नी ने सपोर्ट किया। वे तो एक अच्छा फ्यूचर सोचकर मेरे साथ शादी के बंधन में बंधी थीं, लेकिन अपना ख्वाब पूरा करने की चाहत में मैं उनकी जरूरतों को भी पूरा नहीं कर पा रहा था। उल्टा वे बिना कोई शिकायत करे मेरे साथ स्ट्रगल कर रही थीं। मुझे याद है कि वे प्रेग्नेंट थीं। इस हालात में भी वे बस से सफर कर ऑफिस आती-जाती थीं। उन्हीं के पैसों से पूरा घर चलता था। उस वक्त हमने बद से बदतर दिन देखे, लेकिन उन्होंने एक शिकायत नहीं की। हिरानी के ऑफिस से कॉल आया तो लगा कि कोई मजाक कर रहा क्या राजकुमार हिरानी ने दोबारा मिलने की पेशकश की? पुनीत बताते हैं- हां, कुछ समय बाद ऐसा हुआ। एक दिन सर के ऑफिस से कॉल आया। पहले तो मुझे लगा कि कोई दोस्त मजाक कर रहा है। यकीन होने में कुछ समय लगा। इसके बाद मैं सर से मिलने उनके ऑफिस पहुंचा। इंटरव्यू के बाद उनकी कंपनी में मुझे काम मिल गया। इस तरह मैंने फिल्मों की दुनिया में पहला कदम रखा। लिखी हुई पहली फिल्म कभी रिलीज नहीं हो सकी कब आपने बतौर AD काम करना शुरू किया और राइटिंग में कैसे आना हुआ? पुनीत ने कहा- मैंने डायरेक्टर शंतराम वर्मा के साथ काम किया है। यहां मैं बतौर AD का काम करता था। उन्होंने मुझे एक फिल्म लिखने के लिए कहा था, जिसका नाम नूरा था। कहानी के साथ मैंने उसके गाने भी लिखे। यह काम मैंने 2 महीने तक किया था, जिसके बदले मुझे सिर्फ 18 हजार रुपए मिले थे। यह एक बड़ा प्रोजेक्ट होने वाला था। उम्मीद थी कि इस प्रोजेक्ट से मुझे इंडस्ट्री में बड़ा ब्रेक मिलेगा, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। किसी कारणवश फिल्म बन ही नहीं पाई। मुसीबत के दौर में मुझे एक और बड़ा धक्का मिला। हालांकि, हालात के आगे मैं मजबूर इंसान और क्या ही कर सकता था। फिल्म बैंगिस्तान फ्लॉप होने पर लोगों ने कहा- आप फ्लॉप राइटर हैं फिल्म बैंगिस्तान के फेलियर को कैसे डील किया? पुनीत ने कहा- फिल्म नूरा के बाद मैंने फिल्म बैंगिस्तान की कहानी लिखी थी। कहानी पढ़ने के बाद डायरेक्टर रितेश सिधवानी फिल्म बनाने को तैयार हो गए। हालांकि, यह फिल्म फ्लॉप हो गई। यह दौर मेरे लिए बहुत खराब था। लगता था कि मैं नंगा खड़ा हूं। ऐसा फील होता था कि मानो पब्लिक कह रही हो कि ये तो फ्लॉप फिल्म का हिस्सा है। इंडस्ट्री का उसूल है कि जो अच्छा काम करता है, उसे इंडस्ट्री बाहें फैलाकर अपनाती है, वरना बाहर कर देती है। मेरे साथ भी ठीक ऐसा ही हुआ। फिल्म फ्लॉप होने के बाद लोगों का रवैया मेरे प्रति बदल गया। मुझे याद है कि एक दिन किसी शख्स का कॉल आया। उन्होंने कहा- हमें एक अच्छे राइटर की तलाश है। आप राइटर सुदीप शर्मा (जिन्होंने फिल्म NH 10 की कहानी लिखी है) के बहुत अच्छे दोस्त हैं। क्या उनका नंबर मिल सकता है? जवाब में मैंने कहा- सर मैं भी राइटर हूं। फिर जो उस शख्स ने जवाब दिया, वह सुनकर मेरे होश उड़ गए। उन्होंने कहा- मुझे आपकी नहीं, बल्कि एक हिट राइटर की तलाश है। शख्स की इस बात ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। इस वक्त मैंने Phantom के लिए एक फिल्म लिखी, लेकिन वह भी नहीं बन पाई। फिल्म फ्लॉप ना होती तो शायद मिर्जापुर जैसी सीरीज ना बनती पुनीत आगे कहते हैं- इस बुरे फेज से लड़ ही रहा था कि एक दिन फरहान अख्तर की प्रोडक्शन कंपनी एक्सेल की तरफ से कॉल आया और उन्होंने एक कहानी की डिमांड की। लाइफ का डार्क फेज चल ही रहा था, तो मैंने डॉर्क कॉमेडी के साथ मिर्जापुर की कहानी लिख दी। यह कहानी मैंने 3 दिन में लिखी। मेकर्स से पहली मुलाकात के बाद मैंने 2016 जुलाई तक 2 एपिसोड लिख दिए। जब यह कहानी अमेजन को सुनाई गई तो उन्हें भी बहुत पसंद आई और इस तरह सीरीज मिर्जापुर बनी।