रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स का मसला सुलझाने के लिए ग्लोबल मॉडल्स पर केंद्र की नजर

दीपशिखा सिकरवार, नई दिल्ली

रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स के विवादित प्रावधान को हमेशा के लिए खत्म करने के लिए सरकार इस मामले पर नए सिरे से गौर कर रही है। हाई-प्रोफाइल मेक इन इंडिया वीक के दौरान वोडाफोन को 2 अरब डॉलर के टैक्स विवाद में नया नोटिस जारी होने से यह मुद्दा फिर गर्म हो गया है।

दुनिया में टैक्स के कई बड़े विवादित मुद्दों के समाधान के लिए अपनाए गए मॉडलों का अध्ययन किया जा रहा है ताकि यह देखा जा सके कि इनका इस्तेमाल भारत के हाई-प्रोफाइल मामलों में किया जा सकता है या नहीं।

मामले की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने बताया कि ओईसीडी देशों में अपनाए जाने वाले नेगोशिएटेड सेटलमेंट्स मॉडल पर भी विचार किया जा रहा है। इसके अलावा सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज के अनुभवी अधिकारियों की ओर से खास निर्देश के संबंध में प्रावधान बनाने पर भी गौर किया जा रहा है।

मौजूदा नियमों के तहत सीबीडीटी मेंबर्स किसी विशेष मामले में असेसिंग ऑफिसर्स को निर्देश नहीं दे सकते। अधिकारी ने कहा कि ऐसे असेसिंग ऑफिसर्स को हो सकता है कि यह जिम्मेदारी बमुश्किल सालभर पहले मिली हो और उनके पास जटिल टैक्स मामलों से निपटने का अनुभव नहीं होता है।

सरकार जल्द से जल्द यह मुद्दा हल करना चाहती है क्योंकि इसके चलते इकनॉमिक ग्रोथ को रफ्तार देने के लिए निवेश आकर्षित करने में बाधा पड़ सकती है। अधिकारी ने कहा कि अगर बात बन गई तो इस संबंध में फैसला आम बजट में भी सामने आ सकता है।

मई 2014 में शासन संभालने के साथ ही मोदी सरकार ने ऐसे टैक्स सिस्टम का वादा किया था, जिससे निवेशकों को सहूलियत होगी, लेकिन उसने इनकम टैक्स लॉ के रेट्रोस्पेक्टिव अमेंडमेंट को खत्म नहीं किया है, जिसे 2012 में पिछली यूपीए सरकार लाई थी।

वोडाफोन ने पिछले सप्ताह नोटिस मिलने पर नाराजगी छिपाई नहीं थी। वोडाफोन ने टैक्स नोटिस मिलने के बाद 16 फरवरी को एक बयान में कहा था, ‘एक ओर प्रधानमंत्री मोदी विदेशी निवेशकों के लिए टैक्स फ्रेंडली माहौल का वादा कर रहे हैं, तो दूसरी ओर ऐसा लग रहा है कि सरकार और टैक्स डिपार्टमेंट के बीच कोई संपर्क ही नहीं है।’

पॉलिसीमेकर्स का मानना है कि इस प्रावधान से कोई बड़ा रेवेन्यू मिलने की उम्मीद नहीं है, लेकिन विवाद के कारण निवेश के आकर्षक ठिकाने के रूप में इंडिया की इमेज प्रभावित हो सकती है।

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