राजनीति के नए मोहरे से जाटलैंड साधंगे मोदी

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मेरठ : बागपत के सांसद डॉ. सत्यपाल सिंह केंद्र सरकार में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री बने हैं। लोकसभा चुनाव 2019 के मद्देनजर इसे आरएलडी प्रमुख अजित सिंह की घेराबंदी वाला कदम माना जा रहा है। बीजेपी का मानना है कि राजनीति में नया मोहरा होने के बाद भी पूर्व पुलिस अफसर ने छोटे चौधरी को बड़ी हार देकर अपने इरादे जता दिए थे। अब मंत्री बनने से जाट समाज आसानी से बीजेपी के साथ जुड़ जाएगा।

2014 के चुनाव में बागपत निवासी मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह ने चुनावी दंगल में ताल ठोकी थी। सत्यपाल सिंह कभी अजित सिंह के बेहद करीबी थे। अजित सिंह के लगातार बदलते सियासी फैसले और मोदी के दिखाए गए सपनों में जनता आरएलडी से छिटक गई। अजित सिंह के सामने नए चेहरे डॉक्टर सत्यपाल सिंह को बीजेपी ने उतार दिया। उन्हें जनता का समर्थन मिला। बीजेपी सूत्रों का कहना है कि अगर अजित सिंह वेस्ट यूपी में कमजोर हो जाते हैं तो उसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलेगा। सत्यपाल सिंह का कहना है कि वह सरकार और पार्टी के कामों को बखूबी पूरा करेंगे। न्यू इंडिया बनाने के पीएम के सपने को पूरा करेंगे। हालांकि पूरे देश में काम करना है लेकिन वेस्ट यूपी पर खास ध्यान रहेगा।

जाटों को एक मंच पर लाने के लिए बीजेपी ने विधानसभा चुनाव के बाद सत्यापाल सिंह को आगे करने का कदम बढ़ाया। सत्यपाल सिंह को विधानसभा चुनाव के बाद से ही बीजेपी में अहमियत मिलने लगी थी। उनको लगातार पार्टी के वेस्ट यूपी में होने वाले प्रोग्राम में सक्रिय किया गया। वह हर जगह एक्टिव भी दिखे। बुलंदशहर, बिजनौर, मेरठ के पार्टी के प्रोग्राम में उनको जिम्मेदारी देकर भेजा गया।

नहीं चले बालियान!

अब तक संजीव बालियान बतौर जाट नेता बीजेपी के पास थे। मुजफ्फरनगर दंगे के दौरान की सक्रियता के कारण वह बीजेपी के बड़े नेताओं के संपर्क में आ गए। पिछले लोकसभा चुनाव में टिकट मिल गया। वह जीते और राज्यमंत्री बना दिया गया। मंत्री बनने के बाद भी वह जाटों के बड़े नेता के तौर पर स्थापित नहीं हो सके। वह मंत्री होने के बाद भी दिल्ली कम मुजफ्फरनगर में ज्यादा वक्त बिताते थे। बीजेपी ने बालियान को अजित के मुकाबले खड़ा करने की पूरी कोशिश की। लेकिन बीजेपी की नजर में बालियान कसौटी पर खरे नहीं उतर सके।

वैज्ञानिक बनना चाहते थे

सत्यपाल सिंह वैज्ञानिक बनना चाहते थे। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से केमिस्ट्री में एमफिल की डिग्री हासिल की। ऑस्ट्रेलिया में एमबीए और पीएचडी की। 1980 में महाराष्ट्र कैडर से उनका चयन आईपीएस में हो गया। मुंबई में पुलिस कमिश्नर रहते 1990 के दशक में मुंबई में छोटा राजन, छोटा शकील और अरुण गवली गिरोहों का आतंक था। सत्यपाल ने उनके खिलाफ बड़ा अभियान चलाया था। नक्सलवाद और आदिवासियों से जुड़े मुद्दों पर कई किताबें लिखीं हैं। संस्कृत और वैदिक अध्ययन के साथ आध्यात्मिक विषयों के जानकार भी हैं। वे साल 2012 में मुंबई के पुलिस कमिश्नर बने।

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