ये तीन मुस्लिम भी करते हैं रामलला की सेवा

रोहन दुआ, अयोध्या

पिछले दो दशकों से जब भी भारी बारिश और तूफान आता है तो लोहे के कंटीले तार अयोध्या में राम जन्मभूमि परिसर की सुरक्षा करते हैं। इन तारों की रक्षा के लिए लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) को अब्दुल वाहिद की मदद की जरूरत पड़ती है। 38 साल के अब्दुल वाहिद पेशे से वेल्डर हैं और 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मंदिर की सुरक्षा में मदद करते हैं। वाहिद अपने पेशे और काम से काफी खुश हैं।

सादिक अली कुर्ता, सदरी, पगड़ी और पायजामे की सिलाई करते हैं। उन्हें गर्व है कि हर कुछ महीनों के बाद ‘रामलला’ की मूर्ति के लिए वस्त्र बनाने का काम उन्हें ही सौंपा जाता है। अली कहते हैं, ‘भगवान हम सभी के लिए एक है।’ अली को रामलला के वस्त्र बनाने का काम राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी देते हैं। अली के दोस्त महबूब ने सबसे पहले साल 1995 में सीता कुंड के पास सामुदायिक रसोई के लिए पानी की व्यवस्था हेतु मोटर लगाई थी। तभी से शहर के ज्यादातर मंदिरों में बिजली के काम की देखरेख महबूब ही करते हैं। महबूब इस जिम्मेदारी को भी बखूबी निभाते हैं कि जहां रामलला की मूर्तियां रखी हैं वहां 24 घंटे रोशनी बनी रहे।

ये तीनों ही लोग इस मंदिर से एक दशक से ज्यादा से जुड़े हुए हैं। वाहिद ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘मैंने 1994 से मंदिर में काम करना शुरू किया। तब मैं अपने पिता से काम सीख रहा था। मैं एक भारतीय हूं और सभी हिंदू मेरे भाई हैं। वे तार और अन्य सामान कानपुर से लेकर आते हैं और मैं उन्हें मंदिर के आसपास फिट कर देता हूं। मुझे मेरे काम पर गर्व है।’ साल 2005 में राम जन्मभूमि मंदिर पर हुए लश्कर के हमले को याद करते हुए वाहिद बताते हैं, ‘उस हमले के बाद से मैंने कई बैरियर बनाए हैं और मंदिर के बाहर उनकी रिपेयरिंग करता रहता हूं। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। मेरी तरह अनेक सीआरपीएफ और पुलिस के जवान 24 घंटे मंदिर की सुरक्षा में तैनात रहते हैं।’

अली ने बताया, ‘पिछले 50 सालों से मेरा परिवार सिलाई का काम कर रहा है और हम पुजारियों और साधु-संतों सहित हिंदुओं के लिए कपड़े सिलने का काम करते हैं। मैं राम जन्मभभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के बाद से इनके सभी याचिकाकर्ताओं के लिए सदरी बनाता हूं। इनमें रामचंद्र दास परमहंस से लेकर हनुमानगढ़ी मंदिर के वर्तमान अध्यक्ष रमेश दास शामिल हैं। लेकिन मुझे सबसे ज्यादा संतुष्टि तब मिलती है जब मैं रामलला के लिए वस्त्र तैयार करता हूं।’ 57 साल के अली की दुकान ‘बाबू टेलर्स’ हनुमानगढ़ी की जमीन पर ही बनी हुई है और इसके लिए वह मंदिर को हर महीने 70 रुपया किराया देते हैं।

रामलला की सेवा में लगे ये तीनों ही मुस्लिम अक्सर चाय पर मंदिर पुजारियों से मिलते हैं और सरयू नदी के किनारे घूमते हैं। फैजाबाद कमिश्नर की तरफ से राम जन्मभूमि परिसर की देखभाल करने वाले बंसी लाल मौर्य कहते हैं, ‘हमें उम्मीद है कि अयोध्या में शांति और भाईचारे की यह परंपरा हमेशा कायम रहेगी।’

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