मिसाइलों से धमकाने वाला किम क्यों बन गया इतना भला?
| मजबूरी या दांव?
किम के अचानक भला बनने और खुद के वर्जन 2.0 में शांति का पुजारी बनने की इस कोशिश के पीछे की वजहों को लेकर भी बहस छिड़ी हुई है। एक तबका है जो मानता है कि यह सब अमेरिकी प्रेजिडेंट ट्रंप की ओर से लगातार दबाव बनाने और विश्व समुदाय की ओर से आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाने के डर के कारण हो रहा है। दरअसल ट्रंप ने सत्ता में आने के बाद ही ऐलान कर दिया था कि वह किम से पूरी ताकत से निबटेंगे। जब दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था, तब ट्रंप ने साफ किया कि वह इस बार झुकने वाले नहीं हैं और इस तनाव को निर्णायक मुकाम तक ले जाएंगे। उन्होंने यूरोप को भी इस मामले में अपने साथ लिया। उत्तर कोरिया की हरकत पर चीन भी खुलकर उसके सपोर्ट में नहीं आ सका। ऐसे में किम के पास बहुत अधिक विकल्प बचे नहीं थे। ऐसे में बिगड़ते आर्थिक हालात के बीच मुख्यधारा में आने के लिए शांति का रास्ता चुनना, विकल्प नहीं बल्कि स्पष्ट तौर पर मजबूरी ही था।
मास्टर स्ट्रोक
वहीं दूसरा तबका ऐसा भी है जो इन बदलावों को किम का मास्टर स्ट्रोक मानते हैं। इस तबके का मानना है कि इस सब में किम को चीन का अपरोक्ष तौर पर साथ मिल रहा है। शांति का रास्ता पकड़ने से पहले किम ने चीन का अचानक ही चुपके से दौरा भी किया था। दरअसल, 2011 से सत्ता में आने के बाद किम ने उत्तर कोरिया को ताकतवर और परमाणु हथियार संपन्न देश बनाने का एकमात्र अभियान छेड़ा। 2017 का अंत आते-आते परमाणु हथियारों के मामले में उत्तर कोरिया विश्व के ताकतवर देशों में शामिल हो चुका था। ऐसे में अब कोई भी देश उत्तर कोरिया को हलके में तो नहीं ही लेगा। किम ने साफ कह दिया है कि वह अपनी ताकत खत्म नहीं करेगा। अब किम के सामने आर्थिक रूप से देश को ताकतवर बनाने की चुनौती है जिसके लिए उसे शांति और बातचीत के रास्ते से ही गुजरना होगा। जानकार मानते हैं कि किम ने अब तक अपनी तमाम चालें वक्त पर चली हैं और ताजा पहल में भी किम के दूरगामी लक्ष्य देखे जा रहे हैं। न्यूक्लियर पावर बनने के बाद अब अगर किम अपने देश को आर्थिक ताकत बनाने की ओर बढ़ते हैं तो किम और ताकतवर ही बनेंगे।
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