बैड लोन का अलग ‘बैंक’ बनाने पर विचार कर रहा SBI

बिस्वजीत बरुआ & संगीता मेहता, मुंबई
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अपने फंसे हुए कर्ज के पोर्टफोलियो को एक अलग कंपनी की शक्ल देने के प्रस्ताव पर विचार कर रहा है। मामले की जानकारी रखने वालों ने बताया कि ऐसा होने पर बैंक को बैड लोन के बड़े बोझ से मुक्ति मिल सकती है। एसबीआई को ऐसे तथाकथित बैड बैंक में हिस्सा खरीदने में सॉवरन वेल्थ फंड्स और प्राइवेट इक्विटी फर्म्स की दिलचस्पी दिखी है।

इस ‘बैड बैंक’ में 1.37 लाख करोड़ रुपये के नॉन-परफॉर्मिंग ऐसेट्स होंगे, जो एसबीआई की ओर से दिए गए कुल कर्ज का 9 पर्सेंट हिस्सा है। इस रकम के अलावा एसबीआई ने 31,000 करोड़ रुपये के लोन को भी निगरानी सूची में रखा है। ये वाले लोन हैं तो स्टैंडर्ड ही, लेकिन मामला जरा सा फिसलने पर ये बैड लोन की कैटिगरी में जा सकते हैं। इस संबंध में एसबीआई मैनेजमेंट को भेजी गई ईमेल का जवाब नहीं मिला। अगर एनपीए को मैनेज करने से मुक्ति मिल जाए तो एसबीआई अपनी मुख्य बैंकिंग सर्विसेज पर ज्यादा ध्यान दे सकेगा। एसबीआई अपने पांच असोसिएट बैंकों को अपने साथ मिलाकर ग्लोबल साइज का बैंक बनने पर विचार कर रहा है।

बैड लोन की बढ़ती मात्रा ने मैनेजमेंट को ‘बैड बैंक’ जैसे कई विकल्पों पर विचार करने के लिए मजबूर किया है। एसबीआई के एक सीनियर एग्जिक्युटिव ने कहा, ‘अभी तो यह विचार के स्तर पर है। अभी कोई निर्णय नहीं किया गया है।’ हालांकि ‘बैड बैंक’ के कॉन्सेप्ट पर आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन आपत्ति जता चुके हैं। राजन ने पिछले साल सितंबर में कहा था कि इंडिया के लिए ‘बैड बैंक’ मुफीद नहीं होगा क्योंकि बैंकों ने जिन ऐसेट्स के आधार पर ये लोन दिए हैं, उनमें से ज्यादातर या तो उपयोगी हैं या उन्हें उपयोगी बनाया जा सकता है।

हालांकि कुछ एक्सपर्ट्स ने कहा कि यह कदम एसबीआई के लिए फायदेमंद हो सकता है। इंडिया में मिजुहो बैंक के चीफ स्ट्रैटिजिस्ट और रिसर्च हेड तीर्थंकर पटनायक ने कहा, ‘यह एसबीआई का बहुत अच्छा कदम है। इससे उसकी पूंजी उसके हाथ आएगी और क्रेडिट ग्रोथ के लिए वह उसका इस्तेमाल कर सकेगा।’

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