बवाना की बड़ी जीत से AAP को मिली नई एनर्जी

नई दिल्ली
4 महीने पहले हुए एमसीडी चुनाव में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाने वाली आम आदमी पार्टी ने बवाना विधानसभा उपचुनाव में शानदार
जीत हासिल कर बाजी पलट दी। एमसीडी चुनाव में बवाना सीट के 6 वॉर्डों में AAP को सिर्फ 1 में जीत मिली थी। यहां 4 वॉर्डों पर बीजेपी जीती थी।
उपचुनाव में AAP उम्मीदवार रामचंद्र ने बीजेपी के वेद प्रकाश को 24,052 वोटों के बड़े अंतर से करारी शिकस्त दी। कांग्रेस पिछले कई चुनावों की तरह इस बार भी नंबर 3 पर ही रही। AAP उम्मीदवार रामचंद्र को 59,886 वोट मिले। बीजेपी के वेद प्रकाश को 35,834 वोट और कांग्रेस के सुरेंद्र कुमार को 31,919 वोट मिले।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर 4 महीनों में ही ऐसे कौन से समीकरण बने कि AAP ने बाजी अपने पक्ष में की और शानदार बहुमत के साथ जीत
हासिल की। जानकार मानते हैं कि दरअसल जनता ने इस चुनाव के जरिए तोड़फोड़ की राजनीति को करारा जवाब दिया है। AAP की टिकट पर 2015 में जीत हासिल करने वाले वेद प्रकाश का इस्तीफा देना लोगों को पसंद नहीं आया। पिछले कुछ महीनों से AAP को पॉजिटिव कैंपेन का भी खूब फायदा मिला। इलाके में विकास होने और विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ना पार्टी के पक्ष में गया।

वेदप्रकाश का इस्तीफा बड़ा फैक्टर
AAP नेता भी मानते हैं कि राजौरी गार्डन से AAP विधायक का सीट छोड़कर चले जाना जनता को पसंद नहीं आया था। उसी तरह से वेद प्रकाश का इस्तीफा देकर बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ना जनता को नागवार गुजरा। जनता ने 5 साल के लिए उम्मीदवार चुना था, लेकिन बीच रास्ते में ही वेद प्रकाश ने अलग राह चुन ली। एमसीडी चुनावों में बवाना में बीजेपी को शानदार सफलता मिली थी। उसके बाद वेद प्रकाश ने विधानसभा सीट से इस्तीफा देकर बीजेपी जॉइन कर ली और यहां से बीजेपी के टिकट पर फिर से चुनाव लड़ा। AAP के लिए यह फैक्टर बहुत काम कर
गया। पार्टी ने चुनाव प्रचार के दौरान इस मुद्दे को बड़े स्तर पर उठाया कि 2015 में जनता ने जिस उम्मीदवार को भारी बहुमत से जिताया, उसी
उम्मीदवार ने जनता को धोखा दिया। एक फैक्टर यह भी था कि बवाना में विकास कार्य ठप थे। लोग पूर्व विधायक वेद प्रकाश से नाराज थे। पिछले 4
महीने से AAP ने विकास कार्यों को लेकर मुहिम शुरू की थी, उसका फायदा पार्टी को मिला।

पॉजिटिव कैंपेन का फायदा

AAP को इस चुनाव में पॉजिटिव कैंपेन का पूरा फायदा मिला। विपक्ष पर आरोप लगाए जा रहे थे कि वे नेगेटिव राजनीति कर रहे हैं। नेताओं की बयानबाजी को लेकर भी सवाल उठे। हालांकि AAP ने बवाना चुनाव में पूरा फोकस विकास पर किया। बवाना में टूटी सड़कें, गलियां, सीवर लाइन की समस्या समेत अनेक ऐसे मुद्दे हैं, जिनसे जनता परेशान थी और इसका हल चाहती है। पिछले 3 महीने से सीएम अरविंद केजरीवाल, डेप्युटी सीएम मनीष सिसोदिया और पार्टी के दिल्ली स्टेट कन्वीनर गोपाल राय लगातार लोगों से मिलते रहे और उनकी समस्याएं सुनी। क्षेत्र में सड़कें बननी शुरू हुई और सीवर लाइन का काम भी शुरू हुआ। पार्टी यह संदेश पहुंचाने में कामयाब रही कि जिस तरह से केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में विकास कराया है, उसी तरह से इस इलाके में हो सकता है।

दिल्ली का राजनीतिक घटनाक्रम
बवाना चुनाव के नतीजों का वैसे AAP सरकार पर कोई असर नहीं पड़ता, क्योंकि पार्टी के 65 विधायक हैं। फिर भी AAP के लिए यह जीत बहुत जरूरी थी। पंजाब, गोवा के बाद दिल्ली में राजौरी गार्डन उपचुनाव और एमसीडी चुनाव में पार्टी को सफलता नहीं मिली थी। कार्यकर्ताओं के मनोबल पर भी बुरा असर पड़ा। पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। दावे किए जा रहे थे कि कई विधायक नाराज हैं और बवाना चुनाव के बाद वे भी कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं। बवाना के नतीजों ने यह साफ कर दिया है कि जनता ने दलबदल और अवसरवादी राजनीति को नकार दिया है और इससे AAP को भी यह भरोसा मिला है कि जनता विकास चाहती है। जो खामियां हैं, उन्हें दूर किया जाए। जो पार्टी दिल्ली के विकास के लिए काम करेगी, जनता उस पार्टी को समर्थन देगी।

सीएम नजर आए सुपर ऐक्टिव
सीएम अरविंद केजरीवाल ने पिछले कुछ महीनों से जनता की समस्याओं को जानने के लिए अस्पतालों, स्कूलों का दौरा किया और अधिकारियों के साथ लगातार बैठकें की। उससे लोगों को नई उम्मीद नजर आई। बवाना में सीएम ने खुद विकास कार्यों पर नजर रखी। वह गांवों में लोगों से मिले। साथ ही दिल्ली स्टेट कन्वीनर गोपाल राय ने भी अपनी टीम के साथ रात-दिन बवाना में काम किया। स्मार्ट गांव का कान्सेप्ट लोगों को पसंद आया। बवाना में लोगों को यह लगने लगा था कि यहां तो कोई काम नहीं हो सकता, लेकिन सीएम ने लोगों की सोच को बदला और विकास कार्यों का मॉडल पेश किया।

बीजेपी-कांग्रेस के गढ़ में सेंध
एमसीडी चुनावों में बवाना में बीजेपी ने 4 वॉर्डों में जीत हासिल की थी। गांवों में कांग्रेस उम्मीदवार की अच्छी पकड़ थी। नतीजों से साफ है कि AAP ने बीजेपी और कांग्रेस के गढ़ में भी सेंध लगाई है। पार्टी को हर जगह से अच्छे वोट मिले हैं। 2013 से पहले तक यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी और यहां से सुरेंद्र कुमार लगातार 3 बार जीत भी चुके हैं। 2015 के चुनाव के बाद कांग्रेस का वोट बैंक AAP की तरफ शिफ्ट हुआ है। बवाना उपचुनाव में कांग्रेस ने अपने वोट बैंक को कुछ हद तक वापस लाने में कामयाबी जरूर पाई है, लेकिन अभी भी कांग्रेस के लिए जीत बहुत दूर की बात है।

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