बदले-बदले नजर आए PM, माया-अखिलेश का जिक्र नहीं

कानपुर
यूपी विधानसभा चुनावों के लिए मिशन-300 प्लस पर काम कर रही बीजेपी के लिए सोमवार का दिन अहम था। परिवर्तन रैली में पीएम अपनी पुरानी आक्रामक बॉडी लैंग्वेज में नजर नहीं आए। उन्होंने एक बार भी भाषण में बीएसपी सुप्रीमो मायावती का नाम नहीं लिया। यूपी सरकार पर तीखा वार तो किया, लेकिन सीएम अखिलेश यादव का जिक्र नहीं हुआ। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि कांग्रेस-समाजवादी पार्टी के गठबंधन की संभावनाओं के मद्देनजर ही पीएम ने कांग्रेस की बखिया उधेड़ी।

पुराना अंदाज नहीं दिखा
पॉलिटिकल ऐनलिस्ट मनोज त्रिपाठी के अनुसार, पिछले चार सालों में कानपुर में नरेंद्र मोदी की यह तीसरी रैली थी। पहली दो रैलियों में वह काफी आक्रामक नजर आए थे। सोमवार को यह हमलावर अंदाज नहीं दिखा। उनकी हर बात पर भीड़ तालियां पीटती थी और मोदी-मोदी का शोर हैरान कर देता था। इस बार जनता में ऐसे जोश की कमी थी। शायद इसकी वजह यह है कि आम लोगों को नोटबंदी के बाद से कोई राहत नहीं मिल रही है। लोग अब चीजों पर अपने हिसाब से विचार कर रहे हैं। मिडल क्लास को बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है। शायद पीएम के मन में यह बात है कि जातीय समीकरण में बीजेपी फिट नहीं बैठ रही है, इसलिए बात दोबारा मिडल क्लास पर आ गई है। 300 सीटों का सपना पाल रही भारतीय जनता पार्टी के लिए प्रतिष्ठा बचाने जैसा है।

माया-अखिलेश का जिक्र नहीं
पीएम ने अपने भाषण में कहा कि यूपी सरकार पर आरोप लगाया कि गुंडागर्दी और जमीन-मकान पर कब्जे करने वालों को शह दी जा रही है, लेकिन कहीं भी सीएम अखिलेश यादव का नाम नहीं लिया गया। इसी तरह चुनावों में सबसे कठिन प्रतिद्वंद्वी मानी जाने वालीं बीएसपी सुप्रीमो मायावती का भी जिक्र नहीं आया। त्रिपाठी कहते हैं कि नोटबंदी के दौर में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के संभावित गठबंधन की खबरों ने बीजेपी के माथे पर पसीना ला दिया है। यही वजह है कि मोदी ने कांग्रेस की जमकर बखिया उधेड़ी और उसे कालेधन पर कठघरे में खड़ा कर दिया। लेकिन बीएसपी पर रुख सॉफ्ट है।

नहीं किया लोकल कनेक्ट
कानपुर में स्किल डिवेलपमेंट के बड़े प्रॉजेक्ट्स का शिलान्यास और उद्धाटन के बाद उम्मीद थी कि पीएम लोकल कनेक्ट करेंगे। लेकिन मजदूरों के शहर में लाल इमली, मिल या किसी अन्य लोकल मुद्दे पर बात नहीं की। यह आम कानपुरवासियों के लिए कुछ निराशाजनक रहा। त्रिपाठी का तर्क है कि पीएम डिजिटल पेमेंट नाम का प्रॉडक्ट बेचते नजर आए। वहीं एक और एनालिस्ट मनोज कपूर कहते हैं कि पीएम ने पुरानी परंपराओं से अलग कोई हवा-हवाई वादे नहीं किए। वह जमीन पर थे। हालांकि उन्होंने जिस कौशल विकास केंद्र की आधारशिला रखी है, उसके बारे में कम ही लोगों को पता है।

पर इन्हें न भूलिए
राजनीतिक आलोचनाओं और नुक्ताचीनी के बीच पीएम मोदी के सपॉर्ट बेस को कमजोर मानना बड़ी भूल हो सकती है। रेलवे ग्राउंड पर पहुंचे रिक्शा चालक शानू पठान कुछ उम्मीद लेकर आए थे। वह मोदी से मिल न सके। इसके बावजूद बोले, मोदीजी देश के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। रैली से जाते वक्त कुछ महिलाएं इस बात पर चर्चा कर रही थीं कि पीएम तो रो भी चुके हैं। बाकी पार्टियां उन्हें काम नहीं करने दे रही हैं। उन्होंने कहा कि इस बार भी मोदी को ही वोट देंगे।

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