‘बंदर सरकार के हैं, हमें नहीं चाहिए’

रामेश्वर दयाल, नई दिल्ली

राजधानी के बंदर कौन पकड़े। इस पर एक बार फिर से विवाद शुरू हो गया है। एमसीडी का कहना है कि कानून के अनुसार बंदर जंगली जानवर है, इसलिए उसे हम नहीं पकड़ेंगे। उसका यह भी तर्क है पूरे देश की राज्य सरकारें ही बंदरों को पकड़कर उनका पुनर्वास करती हैं, लेकिन सरकार ने यह जिम्मेदारी हमारे ऊपर डाल रखी है। इस मामले को लेकर एमसीडी कोर्ट में पहुंची हुई है।

इस मसले पर निगम मुख्यालय सिविक सेंटर में कल साउथ एमसीडी की मेयर कमलजीत सहरावत, डिप्टी मेयर कैलाश सांकला, स्थायी समिति अध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता, नेता सदन शिखा राय, स्थायी समिति उपाध्यक्ष नंदिनी शर्मा, स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष भगत सिंह टोकस और अडिशनल कमिश्नर रंधीर सहाय ने बंदरों के मसले पर दिल्ली सरकार को आड़े हाथों लिया और इस बात पर नाराजगी जताई कि वह दिल्ली को उत्पाती बंदरों से निजात दिलाने में घोर लापरवाही बरत रही है। उनका कहना है कि कुत्तों की आबादी नियंत्रित करने का काम हमारा है, क्योंकि वह जंगली नहीं है। लेकिन वन व वन्यजीवन नियमों के अनुसार बंदरों को जंगली की श्रेणी में रखा गया है, इसलिए उन्हें पकड़कर उनका पुनर्वास करने का काम राज्य सरकारों के जिम्मे डाला गया है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि पूरे देश में दिल्ली ही एक ऐसा राज्य है, जहां बंदर पकड़ने का काम नगर निगम पर डाला गया है और दिल्ली सरकार ने इस अभियान पर हाथ खींचे हुए हैं।

मेयर, नेताओं व अफसरों के अनुसार साउथ दिल्ली में बंदरों का उत्पात बहुत अधिक है। वे लोगों को काट तो रहे ही हैं, साथ ही घरों में घुसकर नुकसान भी पहुंचा रहे हैं। वेटिनरी विभाग इन बंदरों को पकड़कर असोला वाइल्ड लाइफ सेंचरी में जाकर छोड़ता है। लेकिन वहां सरकार की ओर से उनके पेट भरने का कोई प्रबंध नहीं है, इसलिए वे दोबारा से रिहायशी इलाकों में आ जाते हैं। इसका नुकसान यह होता है कि बंदर पकड़ने पर हमें वित्तीय बोझ पड़ता है, कर्मचारी मेहनत करते हैं। लेकिन बंदरों की समस्या से निजात नहीं मिल रही है। मेयर ने कहा कि हम सरकार से कहते हैं कि बंदरों का मसला आप अपने वन व वन्यजीव विभाग को सौंपे, लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है। हम बंदर पकड़ने के लिए सरकार से बजट की मांग करते हैं तो वह भी नहीं दिया जा रहा है।

मेयर कमलजीत सहरावत ने बताया कि राजधानी में धार्मिक आस्था व अन्य कारणों के चलते बंदरों को पकड़ने का काम खासा मुश्किल है। एनजीओ तक इसके विरोध में उतर जाते हैं। बंदर पकड़ने के लिए दूसरे राज्यों से मंकी कैचर बुलाने के प्रयास किए जा रहे हैं। प्रति बंदर पकड़ने के लिए धनराशि भी बढ़ाई जा रही है। लेकिन लोग आते हैं और कुछ दिन बाद चले जाते हैं। हम चाहते हैं कि दूसरों राज्यों के जंगलों में बंदरों को छोड़ा जाए, लेकिन वहां के राज्य दिल्ली के बंदरों को लेने को राजी नहीं है। मेयर के अनुसार हमने इस मसले पर हाई कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है, उम्मीद है कि वहां से फैसला हमारे पक्ष में आएगा, जिसके बाद हमें बंदर पकड़ने से निजात मिलेगी।

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