नोटबंदी: बदहाल हुआ कानपुर का चमड़ा उद्योग, कई यूनिट्स में तालेबंदी जैसे हालात

कानपुर
बड़े नोटों पर पाबंदी के बाद इंडस्ट्रियल सिटी कानपुर पर भी गहरा असर पड़ा है। शहर की रीढ़ लेदर इंडस्ट्री का हाल खराब है। टेनरियों में काम करने वाले काफी मजदूर पैसों की किल्लत के कारण गांव लौट गए हैं तो उत्पादन 50-80 प्रतिशत तक गिर गया है। बड़ी टेनरियां तो शायद संकट से निपट भी लें, लेकिन छोटी टेनरियां अगले कुछ महीनों में तालाबंदी की ओर जा सकती हैं।

बड़ी टेनरियों में प्रॉडक्शन रुका
लेदर एक्सपोर्टर असद इराकी के अनुसार, गांवों से आने वाले मजदूर बैंकिंग से अनजान हैं। हर हफ्ते उन्हें मजदूरी कैश में ही दी जाती है। पिछले तीन हफ्ते से रुपये न मिलने के कारण पेमेंट रुका तो वे घर चले गए हैं। इसके अलावा दूसरा बड़ा फैक्टर रॉ हाइड (कच्ची खाल) का है। स्लॉटर हाउसों में काम तकरीबन बंद हो चुका है। यहां किसान जानवर लेकर आते हैं। खाल के एवज में उन्हें कैश पेमेंट किया जाता है। पुराने नोटों का चलन बंद हो चुका है और नए नोटों की जबर्दस्त कमी है। तैयार माल के खरीदार भी नहीं हैं। ऐसे में उत्पादन 50 पर्सेंट तक गिर गया है।

अगर यह हाल एक हफ्ते और बरकरार रह गया तो मांग और कच्चे माल की कमी से बड़ी टेनरियों पर ताले लगना तय है। चमड़ा उद्योग की चाबी किसानों के ही पास है। सैलरी के लिए हर महीने 22-25 लाख रुपये चाहिए, लेकिन बैंक से सिर्फ 2 लाख रुपये निकालने की लिमिट है। फिलहाल कैश फ्लो कुछ महीने तक सुधरने वाला नहीं है। लॉन्ग टर्म में और खराब असर आ सकता है। छंटनी ही उपाय है। यह सीधे तौर पर कानून-व्यवस्था पर असर डालेगा।

कम किए गए मजदूर
छोटी टेनरियों का हाल तो ज्यादा खराब है। स्मॉल टेनर्स असोसिएशन के जनरल सेक्रटरी नैयर जमाल के मुताबिक, 22 नवंबर को छोटी टेनरियों में वेतन दिया जाना था, लेकिन नोट किसी के पास नहीं थे। अचानक मांग 10-20 पर्सेंट रह गई तो तुरंत उत्पादन रोकना पड़ा। कच्ची खाल के दामों में 40 पर्सेंट तक तेजी आ गई है और डिमांड 75 पर्सेंट गिर गई। ऐसे में मजदूरों को कुछ दिन बाद आने को कहा गया है। कुछ टेनरियों में शनिवार को मजदूरी दी जाती है। बैंकों में ही नोट नहीं हैं तो हम क्या करें। मंगलवार को भी कानपुर के कई बैंकों में बिल्कुल कैश नहीं था। लोग मैनेजमेंट को गालियां दे रहे थे।

ग्रामीण मंडियों में भी सन्नाटा
पुड़, फर्रुखाबाद, बंथरा, मलिहाबाद और उरई जैसी जगहों से नगर पंचायतों के माध्यम से रॉ हाइड की वीकली खरीदारी होती है। नोटों की किल्लत ने इसे रोक दिया है। हम किसानों या गरीबों को कैशलेस पेमेंट लेने की बात नहीं समझा सकते।

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