नशीद बोले, मालदीव में 1988 की तरह दखल दे भारत, चीन को झिड़का

कोलंबो/माले
मालदीव के निर्वासित पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने एक तरफ चीन को अपने देश में जारी गतिरोध से दूर रहने को कहा है तो भारत से दखल की मांग की है। नशीद ने बुधवार को ट्वीट कर कहा कि भारत को सेना के दखल से मालदीव में मध्यस्थ की भूमिका अदा करनी चाहिए। नशीद का यह प्रस्ताव सीधे तौर पर चीन के लिए झटका है। हाल ही में चीन ने मालदीव में सैन्य दखल का विरोध करते हुए कहा था कि इस संकट को बातचीत के जरिए हल किया जाना चाहिए।

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चीन ने नशीद की भारत से मांग की ओर से संकेत करते हुए कहा था कि मालदीव में सैन्य दखल स्थिति को और बिगाड़ सकता है। मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को चीन का करीबी माना जाता है। सोमवार को उन्होंने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी और सुप्रीम कोर्ट के दो शीर्ष जजों को गिरफ्तार करा लिया था। इस बीच मालदीव में न्यायिक सेवा आयोग ने गिफ्तार किए गए चीफ जस्टिस अब्दुल्ला सईद और जस्टिस अली हमीद को निलंबित कर दिया है।

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नशीद ने ट्वीट कर कहा, ‘आतंरिक तौर पर विवाद को निपटाने की बात कहना विद्रोह को और आगे बढ़ाना है, जिससे बड़ा उपद्रव हो सकता है। मालदीव के लोगों ने 1988 में भी भारत की सकारात्मक भूमिका को देखा है। वे आए संकट को हल किया और चले गए। भारत कब्जा जमाने वाला देश नहीं है, आजादी दिलाने वाला है। यही वजह है कि एक बार फिर से मालदीव भारत की ओर देख रहा है।’

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श्रीलंका में शरण लेकर रह रहे नशीद की मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी कोलंबो से ही काम कर रही है। नशीद ने मंगलवार को भी ट्वीट कर कहा था, ‘हम चाहते हैं कि भारत सरकार अपनी सेना भेजे और जजों एवं राजनीतिक कैदियों को रिहा कराए। गिरफ्तार किए गए लोगों में पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम भी शामिल हैं। हम भारत की फिजिकल प्रजेंस की मांग कर करते हैं।’

1988 में भारत ने ही मालदीव में स्थापित की थी शांति
मालदीव में ऐसा ही संकट 1988 में भी पैदा हुआ था। तब तत्कालीन राष्ट्रपति और फिलहाल हिरासत में लिए गए अब्दुल गयूम ने तख्तापलट की कोशिशों के खिलाफ भारत से मदद मांगी थी। तब भारत ने अपने सैनिकों को भेजकर देश में उपद्रव के हालातों को काबू में किया था। स्थिति सामान्य होने के बाद भारतीय सैनिक स्वदेश लौट आए थे।

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