देश की आजादी के साथ आया था बंटवारे का बवंडर, रो रहा था दिल और आंखें थीं नम

उस दिन हर किसी के आंसू उलझन में थे। करें भी तो क्या एक ओर ट्रेन की बोगियों में लाशें भरी हुई निकल रही थीं तो दूजी ओर स्वाधीनता के जश्न को दिल्ली सजधज गई थी।

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