‘खुद कायदे में रहें, शिकायत निपटाएं ऑनलाइन गेम कंपनियां’

सूचना एवं प्रौद्योगिकी (आईटी) मंत्रालय ने देश में ऑनलाइन गेमिंग के लिए स्व-नियमन व्यवस्था, शिकायत-निवारण प्रणाली और खिलाड़ियों के सत्यापन का प्रस्ताव रखा है। मंत्रालय ने देश में काम कर रही ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों के भारतीय पतों का भौतिक सत्यापन अनिवार्य करने का भी प्रस्ताव दिया है। ये प्रस्ताव ऑनलाइन गेमिंग नियमों के मसौदे में दिए गए हैं, जिसे सार्वजनिक परामर्श के लिए आज जारी किया गया। 

केंद्रीय आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखरन ने कहा कि परामर्श की प्रक्रिया अगले हफ्ते से शुरू होगी। गेमिंग उद्योग से जुड़ी स्टार्ट-अप, कंपनियां और निवेशक चर्चा का हिस्सा होंगे। ऑनलाइन गेम के लिए अंतिम नियम फरवरी में लाए जाने की उम्मीद है।

स्व-नियमन निकाय में पांच सदस्यों वाला एक निदेशक मंडल होगा। इसमें ऑनलाइन गेमिंग, सार्वजनिक नीति, आईटी, मनोविज्ञान, चिकित्सा या किसी अन्य क्षेत्र से एक-एक सदस्य होगा। निकाय सुनिश्चित करेगा कि पंजीकृत कराए गए गेम्स में ऐसा कुछ नहीं है, जो ‘भारत की संप्रभुता और अखंडता, भारत की रक्षा, देश की सुरक्षा, दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों या सार्वजनिक व्यवस्था का अहित करता हो या इनसे संबंधित किसी प्रकार के संज्ञेय अपराध के लिए लोगों को उकसाता हो।’ 

साथ ही गेम देश के कानूनों के अनुरूप होना चाहिए, जिनमें जुए और सट्टेबाजी से संबंधित नियम शामिल हैं। मसौदे में कंपनियों को स्व-नियामक संस्था द्वारा पंजीकृत सभी ऑनलाइन गेम्स पर पंजीकरण का चिह्न दर्शाकर अतिरिक्त जांच-परख की सुविधा देने के लिए भी कहा गया है।

उसके बाद निकाय किसी मध्यस्थ को सदस्यता प्रदान करेगा, जो नियमों के तहत आवश्यक उचित निर्देशों का पालन करेगा। इसके तहत मध्यस्थ ‘पूरा प्रयास करेगा कि उसके यूजर्स ऐसे किसी गेम की मेजबानी न करें, उसे न दिखाएं और अपलोड, प्रकाशित, प्रसारित या शेयर भी न करें, जो भारत के कानून के अनुरूप नहीं है। इनमें जुए और सट्टेबाजी से जुड़े कानून भी हैं।’

नियम में कहा गया है कि मध्यस्थ किसी भी ऑनलाइन गेम को होस्ट, प्रकाशित या प्रचारित करने से पहले ने से पहले ऑनलाइन गेमिंग मध्यस्थ से सुनिश्चित और स्व-नियामक संस्था से सत्यापित कराएगा कि इस तरह के गेम निकाय के पास पंजीकृत है या नहीं। इसके साथ ही मध्यस्थ को अपनी वेबसाइट पर, मोबाइल ऐप्लिकेशन पर या दोनों पर यह प्रदर्शित करना होगा कि गेम पंजीकृत है।

मध्यस्थ पर ही ऑनलाइन गेमिंग मध्यस्थ द्वारा प्रस्तावित सभी तरह के ऑनलाइन गेम दिखाने की जिम्मेदारी होगी। जीतकर कमाने की उम्मीद से जमा कराई राशि की निकासी या वापसी की नीति, जीत तय करने और राशि वितरित करने का तरीका और ऐसे ऑनलाइन गेम के लिए यूजर द्वारा दिए जाने वाले शुल्क से संबंधित नीति दिखाने का जिम्मा भी उसी का है।

डीएसके लीगल में एसोशिएट पार्टनर नकुल बत्रा ने कहा कि आईटी मध्यस्थ की तरह ऑनलाइन गेमिंग मध्यस्थ को उपयोगकर्ताओं के केवाईसी, धन की पारदर्शी निकासी/वापसी, जीत के बाद कमाई का वितरण, शुल्क, मंत्रालय के साथ पंजीकरण, शिकायत के लिए नोडल अधिकारी की नियुक्ति और औपचारिक निवारण तंत्र को जांचने का जिम्मा लेना होगा। 

ऑनलाइन गेमिंग मध्यस्थ अपनी वेबसाइट, मोबाइल ऐप्लिकेशन या दोनों पर एक रैंडम नंबर जेनरेशन प्रमाण पत्र और प्रत्येक ऑनलाइन गेम के लिए एक प्रमाणित निकाय से नो-बॉट प्रमाण पत्र और उससे जुड़ा ब्योरा प्रदर्शित करेगा। 

गेमिंग एजेंसियों को एक शिकायत निवारण अधिकारी भी नियुक्त करना होगा, जो उनका कर्मचारी होगा और भारत का निवासी होगा। प्रबंधन के लिए एक मुख्य अनुपालन अधिकारी (सीसीओ) नियुक्त किया जाएगा। सीसीओ भारत में कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ मिलकर काम करेगा।

विक्टोरियम लीगलिस – एडवोकेट्स ऐंड सलीसिटर्स की फाउंडिंग पार्टनर कृतिका सेठ ने कहा, ‘इन संशोधनों से ऑनलाइन गेमिंग उद्योग को नियमों के तहत लाने की सरकार की मंशा जाहिर होती है। सरकार उन्हीं गेम्स को ऑनलाइन गेम्स के दायरे में लाना चाहती है, जिनमें रकम जमा कराई जाती है। साथ ही वह यूजर्स पर वित्तीय अस डालने वाले या पुरस्कार राशि की कमाई से जुड़े गेम्स पर निशाना साध रही है। इससे पता चलता है कि सरकार उन ऑनलाइन गेम्स पर ध्यान दे रही है, जिनका यूजर्स पर वित्तीय असर पड़ता है।’

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