अंधेरे में माचिस इंडस्ट्री का भविष्य

पी के कृष्णकुमार, कोच्चि

माचिस इंडस्ट्री के भविष्य पर अंधेरा मंडराने लगा है। पिछले कुछ साल में इंडस्ट्री के रेवेन्यू में 25 फीसदी तक की गिरावट आई है। पिछले एक दशक के दौरान इस इंडस्ट्री से जुड़ी 8,000 यूनिट्स बंद हो चुकी हैं। साथ ही, 1,500 से 2,000 ऐसी यूनिट्स बंद होने के कगार पर हैं। ये तमिलनाडु की उन यूनिट्स का 90 फीसदी हिस्सा हैं, जो राज्य के कुछ जिलों में एक ही लोकेशन के करीब चल रही हैं।

घर में गैस लाइटर्स के बढ़ते इस्तेमाल, स्मोकिंग से होने वाले नुकसान के बारे में बढ़ती जागरूकता और सार्वजनिक स्थानों पर इस पर पाबंदी और प्रॉडक्शन कॉस्ट में बढ़ोतरी जैसी वजहों से इस इंडस्ट्री के लिए खतरे की घंटी बजा दी है।

यहां तक कि माचिस बनाने वाली बड़ी कंपनियां भी संघर्ष कर रही हैं। मिसाल के तौर पर इस इंडस्ट्री की देश की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक विम्को का ही मामला ले लीजिए। आईटीसी ने 4 साल पहले इस कंपनी का अधिग्रहण किया था। विम्को की पिछली सभी 4 यूनिट्स- अंबरनाथ, चेन्नई, कोलकाता और बरेली अब बंद हो चुकी हैं। बरेली यूनिट इसी साल बंद हुई है। आईटीसी माचिस की सोर्सिंग तमिलनाडु की छोटी कंपनियों के जरिये कर रही है। कंपनी इन सप्लाई को अपने ब्रैंड का नाम दे देती है। एम, आई नो, होमलाइट और शिप जैसे विम्को के ब्रैंड्स की मार्केटिंग आईटीसी करती है। एम अब भी इस सेगमेंट में सबसे बड़ा ब्रैंड बना हुआ है।

आईटीसी लिमिटेड में अगरबत्ती और माचिस बिजनस के चीफ ऐग्जिक्यूटिव वी एम राजशेखरन ने बताया, ‘कच्चे माल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी और मार्केट में सस्ता प्रॉडक्ट्स भारी मात्रा में उपलब्ध होने के कारण इसकी सेल्स वॉल्यूम और मार्जिन पर काफी दबाव है।’ इसका सालाना प्रॉडक्शन 800 लाख बंडल से गिरकर 700 लाख बंडल हो गया है। एक बंडल में 600 मैच बॉक्स होते हैं। इसके बावजूद डिमांड के मुकाबले माचिस की सप्लाई ज्यादा है। कुछ वक्त तक अफ्रीकी एक्सपोर्ट के तौर पर उम्मीद की किरण नजर आई थी, लेकिन अब इस पर अंधेरा छाने लगा है।

शिवकासी के द प्रेजिडेंट मैच कंपनी के मालिक गुरुस्वामी जी ने बताया, ‘अफ्रीकी कंपनियों ने भी अब माचिस का लोकल प्रॉडक्शन शुरू कर दिया है। लिहाजा, अगले कुछ साल में इन देशों से भी डिमांड खत्म हो सकती है।’ पाकिस्तानी जैसे देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धी के कारण भी भारतीय मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां को मुश्किलें पेश आ रही हैं। भारत जहां ग्लोबल स्तर पर माचिस का 1,000 डिब्बा 10 डॉलर में बेचता है, वहीं पाकिस्तान ने खरीदारों को लुभाने के लिए यह रेट 7 से 8 डॉलर कर दिया है। हालांकि, भारतीय प्रॉडक्ट क्वॉलिटी के लिहाज से बेहतर होता है, लेकिन कीमत ज्यादा अहम मामला हो जाता है। भारत सालाना 240 करोड़ के माचिस का एक्सपोर्ट करता है।

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