SC में दिल्ली सरकार की दलील: LG राष्ट्रपति के प्रतिनिधि, असल अधिकार CM के पास

नई दिल्ली
दिल्ली का प्रशासनिक बॉस कौन होगा, इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच में सुनवाई चल रही है। दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच अधिकारों को लेकर पिछले कई सालों से जबरदस्त रस्साकशी चल रही है और कानूनी लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी है। ऐसे में संवैधानिक बेंच कई संवैधानिक सवालों को परखेगी। दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में एलजी को एडमिनिस्ट्रेटिव हेड बताया था। दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दिल्ली सरकार ने 6 अपील की हुई है।

सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की ओर से पेश सीनियर ऐडवोकेट राजीव धवन ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-239 एए के तहत दिल्ली को विशेष प्रावधान दिया गया है। यह संसद के कानून से नहीं हुआ है बल्कि संविधान से मिला है। यह लोकतांत्रिक अधिकार है और इसके तहत विधानसभा है और जिसके प्रति मंत्री परिषद और सीएम जिम्मेदार हैं।

सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार के तर्क

‘मंत्री परिषद और सीएम को मिली है वरीयता’
धवन ने कहा कि मंत्री परिषद की सलाह से एलजी काम करेंगे और मंत्री परिषद को तमाम एग्जिक्युटिव अधिकार मिले हुए हैं। मंत्री परिषद और सीएम को इस मामले में वरीयता है। यह एग्जिक्युटिव अधिकार अनुच्छेद-239 एए का प्रावधान देता है और यह दिल्ली को दूसरे केंद्रशासित प्रदेशों से अलग करता है।

‘एलजी सिर्फ राष्ट्रपति के प्रतिनिधि’

ऐडवोकेट धवन ने यह भी दलील दी कि दिल्ली में करीब 2 करोड़ लोग रहते हैं। लोगों को यहां की चुनी हुई सरकार से उम्मीदें हैं। मंत्री परिषद विधानसभा और लोगों के प्रति जिम्मेदार है। एलजी मंत्री परिषद की सलाह से काम करेंगे और किसी खास मुद्दे पर अगर मतभेद होगा तो वह मामले को राष्ट्रपति के पास भेजेंगे। एलजी सिर्फ राष्ट्रपति के प्रतिनिधि हैं और उनका काम है कि वह रोजाना के कामकाज के बारे में राष्ट्रपति को सूचना दें। एलजी के पास कोई संपूर्ण अधिकार नहीं। उन्हें यह अधिकार नहीं कि वह मंत्री परिषद के कामकाज में दखल दें।

‘मतभेद की ठोस वजह जरूरी’
दिल्ली की ओर से दलील दी गई कि दिल्ली को जो भी अधिकार दिए गए हैं वह संवैधानिक गिफ्ट है। एग्जिक्युटिव अधिकार के तहत जो फैसले हैं उससे मतभेद हो सकता है। लेकिन हर मुद्दे पर मतभेद नहीं हो सकता बल्कि ठोस वजह होना जरूरी है। संसदीय लोकतंत्र में अधिकार सीएम के पास होता है।

‘संविधान में संपूर्ण अधिकार किसी को नहीं’
ऐडवोकेट धवन ने दलील दी कि अगर हम पुदुचेरी की बात करें तो वहां के लिए संसद कानून बनाता है। लेकिन दिल्ली को विशेष दर्जा दिया गया है और यहां असल लोकतांत्रिक व्यवस्था है। एलजी के पास कोई वीटो पावर नहीं है। तब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि दिल्ली को अन्य केंद्रशासित प्रदेशों से ज्यादा अधिकार मिले हैं लेकिन अन्य राज्यों के मुकाबले यहां लिमिटेशन हैं। इस पर ऐडवोकेट धवन ने कहा कि संविधान में किसी को भी संपूर्ण अधिकार नहीं दिया गया है। एलजी किसी खास मामले में मंत्री परिषद से अलग मत रख सकते हैं लेकिन हर मामले में ऐसा नहीं हो सकता।

इस दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि अनुच्छेद-239 एए के तहत राज्य तय दायरे में कानून बना सकता है लेकिन इसके साथ अपवाद भी जुड़ा हुआ है उसे कैसे देखा जाए। तब ऐडवोकेट राजीव धवन ने कहा कि अपवाद को जब भी पढ़ा जाएगा तो पूरे परिप्रेक्ष्य में देखा जाएगा। मामले की सुनवाई जारी है।

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