RSS का नया हेडक्वॉर्टर तैयार होने में देरी

नई दिल्ली, पूनम पांडे
दिल्ली में आरएसएस के हेडक्वॉर्टर केशवकुंज को तैयार होने में अब देरी होगी। इसके लिए पहले प्लान बनाया गया था उसे अब बदला जा रहा है। नया प्लान बनने के बाद इसे नए सिरे से पास करना होगा। हेडक्वॉर्टर की करीब 50 साल पुरानी बिल्डिंग गिराकर नई बिल्डिंग तैयार होने में अब करीब 4-5 साल का वक्त लगने की संभावना है। फिलहाल झंडेवालान में बने आरएसएस हेडक्वॉर्टर केशवकुंज से ऑफिस औररेजिंडेट अलग-अलग जगह शिफ्ट किए गए हैं।

बन रहा है नया प्लान : मौजूदा दो मंजिला बिल्डिंग की जगह यहां हाईराइज बिल्डिंग का प्लान वैसे तो पास हो गया था लेकिन अब इसे नए सिरे से बनाना पड़ रहा है। सूत्रों के मुताबिक इसके पास की सड़क का सरकार ने जो नया लेआउट बनाया है उसमें उस तरह 45 मीटर जगह छोड़ने की बात है जिस तरह केशवकुंज है। इससे अब केशवकुंज के रीडिवेलपमेंट के लिए बनाया पुराना प्लान बेकार हो गया है क्योंकि उसमें इतनी जगह नहीं छोड़ी गई थी। आरएसएस के एक अधिकारी के मुताबिक अब नए सिरे से प्लान तैयार हो रहा है जिस वजह से नया हेडक्वॉर्टर तैयार होने में ज्यादा वक्त लगेगा।

जगह हुई कम : आरएसएस का यह हेडक्वॉर्टर 2.5 एकड़ से ज्यादा जगहपर फैला हुआ है। इसके रीडिवेलपमेंट का जो प्लान पहले तैयार हुआ था उसमें 7 टावर बनने थे। लेकिन अब 45 मीटर जगह छोड़ने के बाद यहां 6 टावर ही बन पाएंगे। इसी हिसाब से प्लान बनाया जा रहा है। आरएसएस के अधिकारी के मुताबिक इससे अब कंस्ट्रक्शन की जगह कम हो गई है। उन्होंने बताया कि मौजूदा बिल्डिंग सड़क के लेवल से काफी नीचे हो गई है। इसलिए अब रीडिवेलपमेंट में अंडरग्राउंड पार्किंग बनाई जाएगी। उसके ऊपर ऑफिस कम रेजिडेंशियल कॉम्पलेक्स होंगे। नई बिल्डिंग में 4 कॉन्फ्रेंसहॉल भी होंगे और एक बड़ा ऑडिटोरियम होगा।

22 पेड़ कैसे काटें : केशवकुंज कैंपस के अंदर बरगद, पीपल, नीम सहित दूसरे करीब 22 पेड़ हैं। ये पेड़ कई साल पुराने हैं। नई बिल्डिंग बनाने के लिए इन पेड़ों को यहां से हटाना होगा। आरएसएस के अधिकारी के मुताबिक हमारी कोशिश है कि इन पेड़ों को काटना ना पड़े और इन्हें यहां से कहीं और शिफ्ट कराया जा सके। इसके लिए हम अलग अलग स्तर पर बात भी कर रहे हैं। लेकिन कुछ पेड़ इतने बड़े हैं कि उन्हें शिफ्ट कराने में दिक्कत आ सकती है। उन्होंने कहा कि पुराने स्वंयसेवक इन पेड़ों को लेकर बहुत इमोशनल हैं और वह इन्हें कटते हुए नहीं देखना चाहते। एक बुजुर्ग स्वंयसेवक जो विभाजन के बाद लाहौर से दिल्ली आ गए थे उन्होंने कई पेड़ खुद अपने हाथों से लगाए हैं और इन पेड़ों को काटने की बात होते ही वह भावुक हो जाते हैं।

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