NGOs को निशाना न बनाने की मोदी सरकार से संगठनों की अपील
| भारत के चैरिटी संस्थानों ने प्रधानमंत्री मोदी से हजारों एनजीओं पर सरकार द्वारा क्रैक डाउन को बंद करने की अपील की है। इन संस्थानों का कहना है कि सरकार के इस कदम से गरीब और वंचित तबके के जीवन पर बुरा असर पड़ेगा। पिछले साल मोदी के शासन में आने के बाद से उनकी दक्षिणा पंथी राष्ट्रीय सरकार ने विदेशी फंड संचालित होने वाली चैरिटी संस्थानों पर सख्ती करनी शुरू कर दी है। सरकार का आरोप है कि इन कंपनियों ने अपने चंदों का विवरण नहीं देकर या राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में विदेशी पैसा लगाकर कानून का उल्लंघन किया। चैरिटी संस्थानों ने आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया है कुछ संगठनों में अनियमितता पाई गई हो। संस्थानों का आरोप है कि सरकार गरीब एवं पर्यावरण के जीवन पर बुरा प्रभाव डालने वाली औद्योगिक परियोजनाओं की आलोचना को रोकने के लिए विदेशी चंदों से चलने वाली एनजीओ के खिलाफ काले कानून का इस्तेमाल कर रही है। 171 चैरिटी संस्थानों और कार्यकर्ताओं के हस्तक्षर वाला एक पत्र पीएम मोदी को सौंपा गया है। हस्ताक्षर करने वाले संस्थानों में ऑक्सफैम इंडिया, ह्यूमन राइट्स लॉ सेंटर और कंजर्वेशन ऐक्शन ट्रस्ट जैसे ग्रुप शामिल हैं। इसमें उल्लेख किया गया है, ‘फंड्स को जब्त किया जा रहा है, एनजीओ के चरित्र हनन के लिए चयनित खुफिया रिपोर्टों को रिलीज किया जा रहा है, फंड्स को केस दर केस के आधार पर क्लियर किया जा रहा है औ उनकी गतिविधियों पर कथित रूप से नजर रखी जा रही है।’ इसने चैरिटी संस्थानों पर कार्रवाई को मनमानी, अपारदर्शी और प्रशासकीय निवारण के बगैर किया जा रहा है। पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि उन संगठनों को ही निशाने पर लिया जा रहा जिसके विचारों से सरकार सहमत नहीं है। पिछले महीने सरकार ने 9,000 चैरिटी संस्थानों के लाइसेंसों को रद्द कर दिया और ग्रीनपीस इंडिया के बैंक अकाउंट को ब्लॉक कर दिया। ग्रीनपीस इंडिया ने जीएम फसलों, कोयला खनन और न्यूक्लियर पावर प्रॉजेक्ट्स के खिलाफ अभियान का नेतृत्व किया है। ग्रीनपीस ने कहा है कि फंड की कमी के कारण यह बंद होने के कगार पर पहुंच गया है और सरकार पर छिपे रूप से गला घोटने का आरोप लगाया है। बड़े दाता जैसे अमेरिक के फोर्ड फाउंडेशन की भी जांच की जा रही है। फोर्ड फाउंडेशन की जांच प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता और मोदी की आलोचक तीसता सीतलवाड़ द्वारा संचालित एक ग्रुप को इसकी फंडिंग को लेकर की जा रही है। भारत में अमेरिकी राजदूत रिचर्ड वर्मा ने इस सप्ताह कहा कि वह एनजीओ के खिलाफ कार्रवाई को लेकर चिंतित हैं। जर्मनी के टॉप डिप्लोमेट मिशेल स्टीनर ने कहा कि चैरिटी संस्थानों की उसके शानदार काम के लिए मदद की जानी चाहिए। भारत में संचालित हो रहे चैरिटी संस्थानों की कोई सरकारी संख्या नहीं है लेकिन सरकार का अनुमान है कि देश में कम से कम दो लाख नॉन प्रॉफिट संगठन सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य से लेकर अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए काम कर रहे हैं। गृह मंत्रालय की 2013 की एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया था कि 43,500 से अधिक संगठनों ने चैरिटी के रूप में अपना रजिस्ट्रेशन करा रखा है जिसको 2011/12 में विदेशी फंड प्राप्त हुए। लेकिन, उनमें से मात्र 22,700 ने ही अपने चंदों का विवरण दिया। गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि वे अब फॉरन कॉन्ट्रिब्यूशन रेग्युलेशन ऐक्ट को लागू कर रहे हैं। इस कानून में राजनीतिक प्रवृत्ति की एनजीओ को विदेशी चंदे लेने से प्रतिबंधित किया गया है। जून 2014 में लीक हुई एक खुफिया रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि ग्रीनपीस, ऐम्नेस्टी इंटरनैशनल और ऐक्शन ऐड की स्थानीय शाखें उद्योग विरोधी अभियानों के जरिए देश की इकॉनमी को बर्बाद करने के लिए विदेशी फंड्स का इस्तेमाल करते हैं।
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