टेनिस 2016: ओलिंपिक में पदक नहीं, सानिया-पेस चमके
|भारत के स्टार टेनिस खिलाड़ियों की ओलिंपिक पदक जीतने की ख्वाहिश निजी अहं के कारण एक बार फिर पूरी नहीं हो सकी, लेकिन दिग्गज सानिया मिर्जा और महान लिएंडर पेस के लिए वर्ष 2016 निजी उपलब्धियां लेकर आया। रोहन बोपन्ना के साथ मिलकर सानिया ओलिंपिक पदक जीतने के करीब पहुंचीं, लेकिन रियो में मिक्स्ड डबल सेमीफाइनल में जीत की स्थिति में होने के बावजूद इस जोड़ी को हार झेलनी पड़ी।
वीनस विलियम्स और राजीव राम की अमेरिकी जोड़ी के खिलाफ भारतीय जोड़ी काफी अच्छी स्थिति में थी, लेकिन इसके बाद कई सहज गलतियां करके उन्होंने मुकाबला गंवा दिया। सानिया हमेशा रियो में बोपन्ना के साथ जोड़ी बनाना चाहती थीं, लेकिन टूर पर इन्होंने कभी जोड़ी नहीं बनाई, जिसके कारण अभ्यास की कमी का खामियाजा ओलिंपिक में भुगतना पड़ा।
विफलता के डर के कारण संभवत: ये दोनों जोड़ी बनाकर नहीं खेले। इससे पहले पेस ने भी दावा किया था कि वह मिक्स्ड मिश्रित युगल खेलने के लिए सर्वश्रेष्ठ खिलाडी हैं। बोपन्ना और सानिया की तैयारी इंडियन एसेज के लिए कुछ आईपीटीएल मैच खेलकर ही हुई थी। ये दोनों हालांकि ओलिंपिक के दबाव को झेलने में नाकाम रहे।
पेस और बोपन्ना मेंस डबल में मार्टिन मात्कोवस्की और लुकास कुबोट की पोलैंड की जोड़ी के खिलाफ पहले दौर की बाधा भी पार नहीं कर पाए। बोपन्ना कभी पेस के साथ जोड़ी नहीं बनाना चाहते थे और उन्होंने एआईटीए को भी इससे अवगत करा दिया था कि वह साकेत माइनेनी के साथ खेलना चाहते हैं, लेकिन महासंघ पेस जैसे महान खिलाड़ी की अनदेखी नहीं करना चाहता था जो ऐतिहासिक 7वें ओलिंपिक में हिस्सा लेने के लिए चुनौती पेश कर रहे थे।
पेस की रैंकिंग सीधे प्रवेश के लिए पर्याप्त नहीं थी और अगर बोपन्ना के साथ उनकी जोड़ी नहीं बनती तो उनका 7वें ओलंपिक में हिस्सा लेने का सपना कभी पूरा नहीं होता। पेस और बोपन्ना ने दक्षिण कोरिया की कमजोर डेविस कप टीम के खिलाफ मुकाबले के अलावा कभी साथ अभ्यास नहीं किया। पेस विश्व टीम टेनिस में खेलने में व्यस्त थे और प्रतियोगिता शुरू होने से सिर्फ एक दिन पहले रियो पहुंचे।
पेस ने 7वीं बार ओलिंपिक में हिस्सा लिया जो इससे पहले कोई टेनिस खिलाड़ी नहीं कर पाया, लेकिन उनके लिए खेलों का महाकुंभ यादगार नहीं रहा। साइना, बोपन्ना और पेस की तिकड़ी के लिए यह ओलिंपिक पदक जीतने का संभवत: अंतिम मौका था, क्योंकि 2020 तोक्यो ओलिंपिक के दौरान शायद ये सर्किट पर उतने सक्रिय नहीं हों।
एआईटीए का भी खिलाड़ियों पर नियंत्रण नहीं है क्योंकि खिलाड़ियों का करियर संवारने में उसकी भूमिका लगभग नगण्य है। संघ नहीं बल्कि खिलाड़ी अपने फैसले स्वयं करते हैं और उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
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