बैंकों की समस्या का समाधान विलय नहीं, प्रबंधन को अधिक स्वायत्तता देने की जरूरत: एसोचैम
|सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की कर्ज में फंसी राशि (एनपीए) की गंभीर होती समस्या के बीच देश के प्रमुख उद्योग मंडल एसोचैम ने कहा है कि इस समस्या का निदान उनके विलय में नहीं बल्कि बैंक प्रबंधन को कामकाज और निर्णय लेने में अधिक स्वतंत्रता देने से हो सकेगा।
एसोचैम के अध्यक्ष सुनील कनोरिया ने बुधवार को उद्योग मंडल की इस संबंध में तैयार रिपोर्ट का अनावरण करते हुये कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय ही समस्या का एकमात्र समाधान है, यह जरूरी नहीं बल्कि इन बैंकों के प्रबंधन को सक्षम और पेशेवर बनाये जाने की जरूरत है। कनोरिया ने कहा, ‘हम विलय के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इस समय बैंकों की जो स्थिति है उसमें प्राथमिकता बैंकों को मजबूत और खुद बढ़ने देने को मिलनी चाहिये। बैंकों के प्रबंधन को फैसले लेने में अधिक स्वायत्तता मिलनी चाहिये।’
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की करीब 5 लाख करोड़ रुपये की रकम एनपीए बन चुकी है। इन बैंकों के समक्ष आज यह समस्या काफी विकराल रूप ले चुकी है। हालांकि, सरकार ने बैंकों की स्थिति में सुधार के लिये अनेक उपाय किये हैं। कनोरिया ने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘हमें देश में सभी तरह के बैंकों की जरूरत है। छोटे, बड़े और मध्यम आकार के बैंक होने चाहिये। केवल बड़े बैंक ही समस्या का समाधान नहीं हो सकते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक प्रबंधन में आज काफी डर है, वह फैसले लेने में उत्साहित नहीं हैं, इस डर को दूर किया जाना चाहिये। तभी बैंक आगे बढ़कर काम कर सकेंगे।’
हालांकि, कनोरिया ने स्पष्ट किया कि वह भारतीय स्टेट बैंक में उसके सहयोगी बैंकों के विलय के खिलाफ नहीं हैं। उन्होंने कहा कि स्टेट बैंक के सहयोगी बैंकों की कार्यसंस्कृति और उनका प्रबंधन शुरू से ही एक जैसा रहा है, लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य बैंकों में छोटे बैंकों को समाप्त कर उनका मजबूत बैंक में विलय करना समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
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