9 सिर वाले रावण की सुबह पूजा, शाम को दहन

कानपुर
दशहरे पर यूं तो पूरे देश में रावण का वध हुआ और भगवान राम की पूजा हुई, लेकिन कानपुर के कैलाश मंदिर में माहौल बिल्कुल अलग रहा। सुबह 7 बजे दशानन मंदिर के पट खुले और लोगों ने लंकेश के जयकारे लगाए। पूरे दिन भक्तों की भीड़ के बीच यह सिलसिला चला।

शाम को इस मंदिर के पीछे बने रावण के पुतले के दहन के साथ ही मंदिर को एक साल के लिए बंद कर दिया गया। अनूठी बात यह है कि बाकी जगहों के उलट इस पुतले में रावण के नौ सिर होते हैं। वरिष्ठ इतिहासकार मनोज कपूर के मुताबिक, 1868 में सबसे पहले शिवाला में कैलाश मंदिर बना। इसके 49 साल बाद यानी 1917 में कृष्ण मंदिर अस्तित्व में आया। फिर कुछ साल बाद बना रावण का मंदिर, इसलिए मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि यह मंदिर तकरीबन 100 साल पुराना है।

एक छोटी सी जगह में रावण की मूर्ति लगाकर इसे दशानन मंदिर का नाम दिया गया। हर साल दशहरे के दिन सुबह 7 बजे मंदिर खुलता है। पूजा के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। शाम को रामलीला में रावण दहन के वक्त मंदिर के पट विधिवत पूजन के बाद बंद हो जाते हैं। फिलहाल मंदिर में कोई नियमित पुजारी नहीं है। साल में एक दिन ही पूजा होने के कारण पड़ोसी मंदिर के पुजारी यहां धार्मिक रस्में पूरी कराते हैं।

रावण के सिर पर गधा
दशानन के मंदिर के पीछे ग्राउंड में ही रावण का नौ सिर वाला पुतला बनता है। कपूर ने बताया कि किसी भी इंसान के 10 सिर नहीं हो सकते।

माना जाता है कि महान विद्वान रावण के पास 10 मनुष्यों जितना दिमाग है। उन्होंने सीता हरण का जो पाप किया, उसे समाज ने बेहद खराब माना, इसलिए कैलाश मंदिर में रावण के पुतले के 9 सिर होते हैं। मुख्य सिर पर गधा बनाकर दर्शाया जाता है कि यह खराब काम था।

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