52,911 कंपनियों ने चुकाया न के बराबर इफेक्टिव टैक्स?
|कॉर्पोरेट टैक्स के दायरे में आने वाली कंपनियों को मिले इंसेंटिव्स की वजह से सरकार को मिलने वाले रेवेन्यू में 62,000 करोड़ रुपयों का घाटा हुआ। पिछले पांच सालों के नैशनल टैक्स डेटा के विश्लेषण के बाद यह पता चला है कि बड़ा मुनाफा कमाने वाली कंपनियों ने भी कम इफेक्टिव टैक्स चुकाया है। इफेक्टिव टैक्स दरअसल वह टैक्स है जो कंपनियां अपने मुनाफे पर देती है।
2014-15 में 1 करोड़ तक के मुनाफे पर 29.37 प्रतिशत का टैक्स लगता था और 500 करोड़ रुपए तक के मुनाफे पर कॉर्पोरेट टैक्स की दर 22.88 प्रतिशत थी। इसका मतलब है कि छोटी कंपनियां भी बड़ी कंपनियों के साथ असामान्य माहौल में प्रतिस्पर्धा कर रही हैं, जिसमें बड़ी कंपनियों को टैक्स संबंधी भारी फायदे मिल रहे हैं और इफेक्टिव टैक्स में अंतर साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है।
2014-15 के आंकड़ों के मुताबिक 43.6 प्रतिशत भारतीय कंपनियां घाटे में रहीं। 3 प्रतिशत कंपनियों ने कोई भी मुनाफा नहीं कमाया और 47.4 प्रतिशत कंपनियों ने 1 करोड़ तक का ही मुनाफा दिखाया है। 6 प्रतिशत से भी कम भारतीय कंपनियों ने 1 करोड़ से ज्यादा मुनाफा दर्शाया है। आंकड़ों के अनुसार, 2010-11 से लेकर 2014-15 के बीच में नुकसान दिखाने वाली कंपनियों की संख्या लगातार बढ़ी है।
2014-15 में मुनाफा कमाने वाली 52,911 कंपनियों ने इफेक्टिव टैक्स के तौर पर न के बराबर भुगतान किया है। इसका मुख्य कारण है कि फाइनैंशल लीजिंग, शर्करा, सीमेंट, स्टील, माइनिंग कॉन्ट्रैक्ट, ऊर्जा, कन्सलटेन्सी और पेपर कंपनियों को मिलने वाले इंसेंटिव के चलते इफेक्टिव टैक्स दर काफी कम हो जाता है। इसके अलावा कंपनियों ने एक विशेष तरह की अकाउंटिंग ट्रिक का भी इस्तेमाल किया। इसके तहत शुरुआती सालों में किसी एसेट के दामों में बड़ी गिरावट आती है, जिसके चलते इफेक्टिव टैक्स दर भी कम हो जाती है।
रोहित परख लंदन निवासी सामाजिक निवेशक हैं, जो भारत की कारोबारी नीतियों पर नजर बनाए रखते हैं और ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं।
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