हिंदी से प्रेम, माने भारत से प्रेम, ‘अंग्रेजी धन की भाषा है, मन की भाषा तो हिंदी ही है’-अभिनेता आशुतोष राणा
|देश में हिंदी थोपने की जरूरत ही नहीं है। वह अपने आप आगे बढ़ेगी अगर विरोधी और समर्थक दोनों इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाकर लचीला रवैया अपना लें। हिंदी वालों की जिम्मेदारी इस संबंध में थोड़ी ज्यादा है।