देश में हिंदी थोपने की जरूरत ही नहीं है। वह अपने आप आगे बढ़ेगी अगर विरोधी और समर्थक दोनों इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाकर लचीला रवैया अपना