हालात से लड़ने को यहां अखाड़े में उतरती हैं लड़कियां, साक्षी की कामयाबी ने बढ़ाए हौसले

रोहतक
रक्षाबंधन के दिन दोपहर के वक्त जमकर बारिश हो रही थी। लेकिन न तो भारी वर्षा और न ही त्योहार का मौका करीब 100 पहलवान लड़के और लड़कियों को अखाड़े में ट्रेनिंग से रोक पाए। यहां के सर छोटू राम स्टेडियम में प्रतिभाशाली पहलवानों का जमावड़ा दिखता है। यह वही अकैडमी है, जहां रियो ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली महिला पहलवान साक्षी मलिक ने ट्रेनिंग ली थी। यहां सुविधाएं कम हो सकती हैं, लेकिन पहलवानों का उत्साह कम नहीं है।

बीते दो दशकों से यहां का कुश्ती का अखाड़ा युवाओं को आकर्षित करता रहा है। यहां पहलवान को आपको डबल लेग अटैक के दांव सीखते हुए दिखाई देते हैं। इसी दांव का इस्तेमाल करते हुए साक्षी मलिक ने रियो ओलिंपिक में कांस्य पदक पर कब्जा जमाया था। यहां का आयताकार रेसलिंग हॉल बमुश्किल चार बैडमिंटन कोर्ट्स के जितना है। बहुत ज्यादा दर्शक भी नहीं होते हैं, दो बड़ी मैट यहां हैं। उमस भरे माहौल में ही कई पहलवान आपको पसीना बहाते दिखाई देते हैं। यहीं पर लंदन ओलिंपिक के ब्रॉन्ज मेडलिस्ट योगेश्वर दत्त का बड़ा पोस्टर लगा दिखाई देता है।

इससे भी बड़े पोस्टर कोच ईश्वर सिंह दहिया और मनदीप सिंह की ओर से साक्षी मलिक को कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर जीतने पर बधाई देते हुए लगाए गए हैं। 1997 में दहिया ने इस अकैडमी की शुरुआत की थी। दहिया के निर्देशन में बीते 19 सालों में यहां राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाले खिलाड़ियों का एक पूल तैयार हो चुका है।

महिला पहलवानों की बात करें तो 2003 में उन्होंने पहली बार यह अकैडमी जॉइन की थी। दहिया बताते हैं, ‘साक्षी यहां 2004 में आई थीं।’ अब मनदीप सिंह (जो दहिया के बाद साक्षी के कोच बने हैं) और नरेंद्र कुमार सेंटर के गुरु की भूमिका में हैं। नरेंद्र कहते हैं, ‘करीब 70 लड़के और 25 से 30 लड़कियां यहां कुश्ती का प्रशिक्षण लेते हैं।’ ज्यादातर लड़कियां सामान्य परिवारों से आती हैं। इन लड़कियों के लिए कुश्ती हालात से जीतने का एक माध्यम है। इसके अलावा वह इसे यहां की पितृसत्तात्मक व्यवस्था और तमाम बंदिशों से बाहर निकलने का जरिया भी मानती हैं।

साक्षी के ब्रॉन्ज मेडल जीतने के बाद से उन पर इनामों की बौछार हो रही है। लेकिन, जो लड़कियां यहां अगली साक्षी बनने की कोशिश में हैं, उन्हें बहुत ज्यादा सपॉर्ट नहीं मिल रहा है। इस अखाड़े में कुश्ती के दांव सीख रहीं पिंकी बताती हैं कि वह बिना किसी स्कॉलरशिप और जॉब के यहां जुटी हैं। जूनियर एशियन चैंपियनशिप चैंपियन पिंकी के पिता का कुछ दिनों पहले ही देहांत हो चुका हैं। उनका परिवार छह एकड़ भूमि पर गुजारा करता है। कोच नरेंद्र कहते हैं, ‘रितोली गांव की 53 किलोग्राम भारवर्ग कैटिगिरी की पहलवान पिंकी खेल के प्रति बेहद समर्पित हैं।’

नरेंद्र कहते हैं कि वह बेहद आक्रामक पहलवान हैं और खुद पर बेहज विश्वास करती हैं। पिंकी कहती हैं, ‘मेरा लक्ष्य ओलिंपिक में मेडल जीतना है।’ हाल ही में वह नैशनल कैंप से लौटी हैं और अगले ही सप्ताह उन्हें वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए फ्रांस रवाना होना है।

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