सीएसआर खर्च की अनिवार्यता टैक्स की तरह: रतन टाटा

मुंबई

टाटा समूह के मानद अध्यक्ष रतन टाटा ने कहा कि कंपनियों पर कंपनी सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) के तहत खर्च करने की अनिवार्यता किसी ‘कर’ की तरह है और सरकार को लाभार्थियों की पहचान में मदद करने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि परमार्थ कार्य की भावना अंदर से आती है। टाटा ने कहा, ‘परमार्थ कार्य या कुछ देने की भावना आपके अंदर से आती है और जब आप यह अनिवार्य करते हैं कि आप ‘एक्स’ या ‘वाई’ देंगे, स्पष्ट रूप से अन्य कारण सृजित करते हैं।’ उनकी यह टिप्पणी फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग द्वारा 45 अरब डॉलर की संपत्ति का 99 प्रतिशत दान करने की योजना की घोषणा के कुछ ही दिन बाद आई है।

सरकार द्वारा निश्चित मानदंडों को पूरा करने वाली कंपनियों के लिये अपने लाभ का 2.0 प्रतिशत सीएसआर पर खर्च करने की अनिवार्य किये जाने के बारे में टाटा ने कहा, ‘सरकार की तरफ से 2.0 प्रतिशत की अनिवार्यता एक कर की तरह हो गया है।’ हालांकि उन्होंने जोर देकर कहा कि इस प्रकार के योगदान से बड़ी राशि आ सकती है और अगर सरकार स्पष्ट रूप से परियोजनाओं या क्षेत्र को चिन्हित कर सकती है जहां कोष की जरूरत है, तो उस राशि का उपयोग बेहतर तरीके से हो सकता है।’

तीन दशक तक टाटा संस की कमान संभालने के बाद 2012 में सेवानिवृत्त हुए टाटा ने कहा कि टाटा समूह की कंपनियां कई साल से अपने लाभ का पांच प्रतिशत तक सीएसआर में खर्च कर रही हैं। टाटा ने ‘अच्छा परमार्थ कार्य’ और ‘बुरा परमार्थ कार्य’ की बहस में पड़ने से इनकार किया जो जुकरबर्ग और अन्य की घोषणा के बाद शुरू हुई है। उन्होंने कहा कि यह नये प्रकार की चीजें हैं जिसे विकास और सुधार के लिये समय दिये जाने की जरूरत है। उन्होंने स्वयं का गुणगान किये बिना परमार्थ कार्य किये जाने को समाज के लिये अच्छा बताया।

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