विधानसभा में इतने तल्ख क्यों हुए एलजी-सरकार के रिलेशन

रामेश्वर दयाल, नई दिल्ली

ऐसा क्या हुआ कि उपराज्यपाल अनिल बैजल व दिल्ली सरकार के बीच में चल रहा टकराव दिल्ली विधानसभा में और तल्ख हो गया। सदन में निजी तौर पर की जा रही आलोचनाओं से राजनिवास इतना आहत क्यों हुआ कि एलजी ने विधानसभा को आदेश जारी कर दिए कि एलजी के अधिकारों पर चर्चा न हो। इसके बावजूद तकरार चलती रही। विधानसभा में पहले ऐसा होता रहा है कि एलजी के अधिकारों पर सवाल उठाए गए हैं और कानून व्यवस्था को लेकर पुलिस कमिश्नर तक तलब किए जा चुके हैं। विशेषज्ञ कह रहे हैं कि वर्तमान हालात के चलते विधानसभा की उपयोगिता खत्म होती नजर आ रही है।

विधानसभा का बजट सेशन इस बार लंबा चला। सदन में बजट पास करने के अलावा एलजी टारगेट पर रहे। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल तक इस बात से नाराज थे कि एलजी ने सरकार ने सारे अधिकार बंधित कर दिए हैं। उनके साथ सत्ता पक्ष का भी कहना था कि चुनी हुई सरकार कानून व्यवस्था, पुलिस, जमीन आदि मामलों पर चर्चा क्यों नहीं कर सकती। इस मसले पर मौखिक आलोचना तो होती रही लेकिन एलजी से जुड़े अधिकारों पर अधिकारिक चर्चा नहीं हो पाई। उसका कारण यह था कि सदन में इस मसले को लेकर जो भी सवाल-जवाब या अन्य मामले उठे, उनका दिल्ली सरकार के अफसरों ने ही उत्तर देने से इनकार कर दिया और कहा कि चूंकि यह मसले एलजी के क्षेत्राधिकार में हैं, इसलिए वे कुछ नहीं बता सकते। इस बार सदन में आश्चर्यजनक रूप से राजनिवास के अधिकारों से जुड़े अनेकों सवाल पूछे गए, लेकिन दिल्ली विधानसभा ही शायद पूरे देश की ऐसी विधानसभा है, जहां सरकार के अफसर ही उत्तर देने से इनकार करते रहे।

सूत्र बताते हैं कि विधानसभा में लगातार निजी आरोपों से आहत एलजी ने विधानसभा सचिवालय को आदेश जारी किए दिए थे कि सदन में एलजी से जुड़े अधिकारों सर्विस, भूमि, पुलिस व कानून व्यवस्था पर चर्चा न हो। इसके बाद तो सदन मे सब कुछ बदल गया। सत्ता पक्ष और सरकार को ही अपने सवालो के जवाब मिलना बंद हो गए। सदन में सत्ता पक्ष की ओर से पुलिस व डीडीए अफसरों को बुलाने की बात हुई, लेकिन एक भी बड़े अधिकारी की बात तो दूर, छोटा अधिकारी भी सदन में नहीं आया। इस व्यवहार से सरकार ने एलजी हाउस पर कड़े आरोप तो लगाए लेकिन अधिकारिक तौर पर कुछ न कर सकी। वैसे इसी विधानसभा में राजनिवास के अधीन पुलिस कमिश्नर तक तलब किए जा चुके हैं तो लैंड एंड बिल्डिंग तक पर रिपोर्ट तक पेश हो चुकी हैं।

सूत्र बताते हैं कि दिल्ली विधानसभा में साल 2003 में दिल्ली में बिगड़ती कानून व्यवस्था के मद्देनजर तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अजयराज शर्मा तलब किए गए थे। उन्हें बताना पड़ा था कि कानून व्यवस्था दुरुस्त रखने के लिए पुलिस की ओर से क्या प्रयास किए जा रहे हैं। इससे पहले साल 1995 में जमीन से जुड़े मामलों को लेकर सेवाराम समिति की रिपोर्ट सदन में पेश की गई थी, जिसमें डीडीए के जमीन घोटालों की जानकारी दी गई थी। इस मसले पर उस वक्त के विधानसभा सचिव एसके शर्मा का कहना था कि ऐसे मसले सदन में आने पर राजनिवास द्वारा सवाल खड़े किए जाते थे। लेकिन विधानसभा द्वारा राजनिवास को बता दिया जाता था कि विधानसभा में उपराज्यपाल से जुड़े अधिकारों पर कानून बनाने पर बंधन है, लेकिन उस पर चर्चा करने पर कोई रोक नहीं है। उसका कारण यह है कि यह निर्वाचित सदन है। सदन में ऐसी चर्चा आज भी होनी चाहिए, लेकिन लगता है कि दिल्ली सरकार का ‘ध्येय’ कुछ और ही है। लोकसभा सचिव भी रह चुके शर्मा का कहना है कि अगर ऐसे ही हालात रहे तो वह दिन दूर नहीं, जब विधानसभा की उपयोगिता ही खत्म हो जाएगी।

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