रेमंड के मालिक सिंघानिया से पोतियों ने मांगा हिस्सा
| हाई कोर्ट में दायर याचिका में बच्चों ने पैरंट्स और डॉ. सिंघानिया के बीच उस समझौते का विरोध किया है, जिसके तहत उन्होंने पैतृक संपत्ति पर स्वेच्छा से अपना और बच्चों का दावा छोड़ दिया था। दादा को बनाया प्रतिवादी 1998 के समझौते का विरोध ‘पैतृक जेवरों की लिस्ट मांगी जाए’ ‘दादा की संपत्ति पर हमारा हक’
रेमंड लिमिटेड के मालिक डॉ. विजयपत सिंघानिया की पोतियों ने उनके खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में जमीन-जायदाद में हिस्सेदारी के लिए केस दायर किया है। सिंघानिया ने बेटे मधुपति को 1998 में एक समझौते के जरिए संपत्ति से बेदखल कर दिया था। अब मधुपति की बेटियों – अनन्या (29), रसालिका (26), तारिणी (20) और रायवत्री (18) ने यह मुकदमा दायर किया है।
याचिका में सिंघानिया के पोते-पोतियों ने माता-पिता, डॉ. सिंघानिया और रेमंड लिमिटेड को प्रतिवादी बनाया है। सिंघानिया के पोते-पोतियों की ओर से मुकदमा शर्मिला देशमुख लड़ रही हैं। उन्होंने बच्चों के नाना, देव कुमार अग्रवाल को इस मामले में अटॉर्नी नियुक्त किया है। देशमुख ने मुकदमा दायर होने की पुष्टि की। 1998 में डॉ. सिंघानिया और उनके बेटे मधुपति में एक-दूसरे के तौर-तरीकों को लेकर विवाद हो गया था। इसके बाद उन्होंने राहें जुदा करने का फैसला किया।
30 दिसंबर 1998 को सिंघानिया, उनके बेटे मधुपति और उनकी बहू अनुराधा में यह समझौता हुआ कि वह जमीन-जायदाद में फूटी कौड़ी नहीं लेंगे। समझौते के अनुसार, उस समय मधुपति मुंबई छोड़कर सिंगापुर में परिवार समेत बस गए। इस मुकदमे में अरबों रुपये की संपत्ति दांव पर लगी है। रिपोर्ट के अनुसार वित्तीय वर्ष 2012-13 में अकेले रेमंड लिमिटेड का नेट वर्थ 1680 करोड़ था।
बच्चों ने पिता और सिंघानिया परिवार के बीच समझौते को पहली नजर में अवैध बताया है। उन्होंने दावा किया कि पैरंट्स के साथ उनके दादा ने अन्याय किया, जो सिंघानिया परिवार की परंपराओं के खिलाफ है। यह समझौता मजबूरी में त्याग का दस्तावेज है, जहां उनके माता-पिता को जबर्दस्ती संपत्ति पर हिस्सा छोड़ने को कहा गया। याचिका में यह आग्रह किया गया है कि डॉ. सिंघानिया से पैतृक जेवरों की लिस्ट मांगी जाए, जिससे उनकी असली कीमत का अंदाजा हो सके।
याचिका में दावा किया है कि पैरंट्स अपनी इच्छा से बच्चों को अपनी संपत्ति से बेदखल नहीं कर सकते। यह उनका जन्मजात हक है। हिंदू लॉ के अनुसार वह संयुक्त परिवार के सदस्य हैं, इसलिए उनका इस पैतृक संपत्ति में हक है। याचिका में कहा गया है कि सिंघानिया उनके हिस्से की चल और अचल संपत्ति को न बेच सकते हैं और न ही किसी को दे सकते हैं। उनके बचपन में अगर जायदाद बेच दी गई हो तो वह अवैध है।
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