राज्यों का बचेगा काफी धन

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत एक साल के लिए राशन की दुकानों पर मुफ्त गेहूं और चावल देने का फैसला किया है। इससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत खाद्य आपूर्ति पर अतिरिक्त सब्सिडी देने वाले राज्यों को वित्त वर्ष 2024 में भारी बचत हो सकती है। केंद्र सरकार एनएफएसए के तहत राज्यों को 3 रुपये किलो चावल और 2 रुपये किलो गेहूं मुहैया कराती है। तमाम राज्य सस्ते गल्ले की दुकान पर इससे अतिरिक्त सब्सिडी भी देते हैं। आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा और तेलंगाना जैसे राज्य चावल पर 1 रुपये किलो अतिरिक्त सब्सिडी देते हैं, जबकि झारखंड, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल चावल और गेहूं राशन की दुकानों पर मुफ्त देते हैं।

राज्यों द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी में खाद्य सब्सिडी का बड़ा हिस्सा है। राज्यों द्वारा दी जाने वाली खाद्य सब्सिडी का सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन आंध्र प्रदेश अपने कुल सब्सिडी का करीब 40 प्रतिशत खाद्य सब्सिडी पर खर्च करता है, जबकि केरल की कुल सब्सिडी में खाद्य सब्सिडी 86 प्रतिशत है। भारतीय रिजर्व बैंक की हाल की वित्तीय रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 23 में राज्यों ने सब्सिडी के मद में 2.48 लाख करोड़ रुपये बजट रखा था।

15वें वित्त आयोग के चेयरमैन एनके सिंह ने कहा कि खाद्य सब्सिडी में बचत होने पर राज्यों को राजकोषीय लचीलापन मिलेगा, जिसका वे कई तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘मात्रा बढ़ाकर पीडीएस योजना की पहुंच बढ़ाई जा सकती है। स्वास्थ्य और शिक्षा पर बजट बढ़ाया जा सकता है। खासकर स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च बढ़ाया जा सकता है, मेरी नजर में यह क्षेत्र हमेशा उपेक्षा का शिकार रहा है। इसकी सिफारिश वित्त आयोग ने भी की थी। यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना का हिस्सा है। मेरे विचार से यह प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए।’

भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव सेन ने कहा कि राज्य सरकारों का बहुत ज्यादा धन बचेगा, लेकिन उन्हें केंद्र से राजनीतिक लाभ गंवाना पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘राज्यों के राजनीतिक खेल में खाद्य सब्सिडी अहम है। इसे अब उनसे छीन लिया गया है, क्योंकि मुफ्त खाद्यान्न का पूरा श्रेय अब केंद्र सरकार ले लेगी। अब सवाल यह है कि राजनीतिक फायदा के लिए राज्य सरकारें उस धन का इस्तेमाल किस तरीके से करेंगी।’

ईवाई इंडिया में मुख्य नीति सलाहकार डीके श्रीवास्तव ने कहा कि राज्यों के पास अपने नागरिकों की मदद करने के लिए हमेशा संभावना रहेगी। उन्होंने कहा, ‘इस समय पीडीएस के तहत सीमित खाद्यान्न मुहैया कराया जाता है। राज्य अन्य अनाज भी इसमें शामिल कर सकते हैं, जिन पर सब्सिडी नहीं है। यह राज्यवार अलग अलग हो सकता है, जो उनके नागरिकों की भौगोलिक स्थिति पर निर्भर होगा।’

बहरहाल सेन को यह डर है कि केंद्र सरकार संभवतः राज्यों को पीडीएस के तहत खाद्यान्न की मात्रा बढ़ाने की अनुमति नहीं देगी। उन्होंने कहा, ‘मुझे भरोसा है कि अगर राज्य 5 किलो की जगह 7 किलो खाद्यान्न वितरण की अनुमति मांगेंगे तो केंद्र सरकार राज्यों को अतिरिक्त अनाज का आवंटन नहीं करेगी। राज्यों को भारतीय खाद्य निगम की नीलामी के माध्यम से अनाज लेना पड़ सकता है, जो उनके लिए खर्चीला पड़ सकता है।’

केरल के पूर्व मंत्री थॉमस आइजक ने कहा कि राज्यों पर वित्तीय बोझ कम होगा, लेकिन केंद्र को अतिरिक्त खाद्यान्न देना बंद नहीं करना चाहिए था, जो प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मिल रहा था। उन्होंने कहा, ‘केरल में हम पहले से मुफ्त अनाज दे रहे हैं। केंद्र सरकार ने अब अतिरिक्त अनाज देना बंद कर दिया है। ऐसे में केरल के लोगों की स्थिति खराब होगी।’

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