मोदी-शी सम्मेलन ठोस संवाद का एक बड़ा अवसर: अमेरिकी विशेषज्ञ

वॉशिंगटन
अमेरिका के टॉप विशेषज्ञों का मानना है कि वुहान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच होने वाली अनौपचारिक मुलाकात दोनों देशों के संबंधों पर एक सार्थक संवाद करने के लिए अवसर उपलब्ध कराएगी। चीन के वुहान शहर में मोदी और शी गुरुवार से दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे। इस दौरान दोनों नेता विभिन्न विवादों और मतभेदों के चलते प्रभावित हुए द्विपक्षीय रिश्तों को नए सिरे से सुधारने का प्रयास करेंगे।

हालांकि शिखर सम्मेलन के दौरान कोई बड़ा समझौता होने की संभावना नहीं है। दोनों नेताओं ने संकेत दिए हैं कि इस मुलाकात का लक्ष्य भविष्य में रिश्तों की दिशा को प्राथमिकता से समझने के लिए उनके द्वारा एक ईमानदार प्रयास करना है। एशिया की वरिष्ठ सलाहकार और टॉप अमेरिकी थिंक टैंक सेंटर फॉर स्ट्रैटिजिक ऐंड इंटरनैशनल स्टडीज (CSIS) में चीनी ऊर्जा परियोजना की निदेशक बोनी एस ग्लेसर ने कहा, ‘मोदी-शी सम्मेलन का अनौपचारिक प्रारूप दोनों नेताओं को अपने द्विपक्षीय संबंधों की समस्याओं के संबंध में एक ठोस संवाद करने का अवसर उपलब्ध कराएगा।’

ग्लेसर ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि टकराव वाले किसी बड़े क्षेत्र में कोई हल निकलेगा। चीन भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) में शामिल किए जाने को लेकर अपने रुख में बदलाव नहीं करेगा।’ इसी तरह भारत भी शी की खास परियोजना बेल्ट ऐंड रोड इनिशटिव (BRI) को लेकर अपना रुख नहीं बदलेगा। चाइना स्टडीज में फ्रीमेन चेयर के उपनिदेशक स्कॉट केनेडी ने कहा कि भारत और चीन के पास ऐसे कई रास्ते हैं जिनके आधार पर वे अपना वाणिज्यिक सहयोग बढ़ा सकते हैं और भूभाग तथा अन्य मुद्दों पर अपने मतभेद दूर कर सकते हैं।

CSIS में यूएस-इंडिया पॉलिसी स्टडीज में वाधवानी चेयर से संबद्ध रिचर्ड एम रोसोव ने कहा कि हम चाहते हैं तनाव कम हो जिसमें इस तरह के सम्मेलन मदद कर सकते हैं। भारत और चीन के पास ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन तथा एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक जैसे कई क्षेत्र हैं जिनमें वे सहयोग करते हैं। यह दायरा व्यापक हो सकता है।’

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