मेट्रो के किराए बढ़ाने में दिल्ली सरकार की रजामंदी थी

विशेष संवाददाता, नई दिल्ली

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मेट्रो में होने वाले किराया बढ़ोतरी को जनविरोधी बताया है और अपने परिवहन मंत्री से किराया बढ़ोतरी रोकने के उपाय निकालने के आदेश जारी किए हैं। लेकिन हकीकत यह है कि किराया बढ़ोतरी के निर्णय पर दिल्ली सरकार ने भी मुहर लगाई थी और उस वक्त इस बढ़ोतरी का विरोध नहीं किया था।

मुख्यमंत्री ने आज सुबह एक ट्विट किया है, जिसमें कहा है कि ‘मेट्रो किराया बढ़ोतरी जनविरोधी। ट्रान्स्पोर्ट मंत्री कैलाश गहलोत को आदेश दिए हैं कि एक हफ़्ते में किराया बढ़ोतरी को रोकने के उपाय निकालें।’ जिसके बाद यह संभावना बनने लगी है कि क्या मेट्रो के बढ़ने वाले किराए रुक सकते हैं। मिली जानकारी के अनुसार गत मई माह में मेट्रो किराए को लेकर बनाई गई उच्चस्तरीय किराया निर्धारण समिति ने मेट्रो के किराए में बढ़ोतरी की थी। ये किराए 10 मई से ही बढ़ा दिए गए थे। समिति ने यह भी घोषणा की थी कि मेट्रो के किराए एक बार और अक्टूबर माह में बढ़ाए जाएंगे। जिसके बाद माना जा रहा है कि अगले माह 10 तारीख से पांच किलोमीटर से ऊपर मेट्रो के किराए में 10 रुपये की बढ़ोतरी हो जाएगी। असल में मेट्रो के दोनों बार किराए बढ़ाने पर दिल्ली सरकार ने रजामंदी जताई थी और उस वक्त इसका विरोध नहीं किया था। मेट्रो सूत्रों के अनुसार इस समिति का गठन केंद्र सरकार करती है, जिसकी अध्यक्षता रिटायर जज करते हैं। कमिटी में केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के सचिव और दिल्ली सरकार के चीफ सेक्रेटरी सदस्य होते हैं और इनकी अनुशंसा के आधार पर ही मेट्रो के किराए बढ़ा गए थे।

मेट्रो सूत्रों के अनुसार मेट्रो के किराए में दखल देने का अधिकार दिल्ली सरकार के पास नहीं है। न वह किराए बढ़ा सकती है और न घटा सकती है। अगर सरकार को किराए घटाने थे तो उच्चस्तरीय कमिटी की बैठक में दिल्ली सरकार के प्रतिनिधि चीफ सेक्रेटरी को विरोध दर्ज कराना था, लेकिन उन्होंने नहीं करवाया। मेट्रो के एक अधिकारी से यह पूछे जाने पर कि क्या दिल्ली सरकार बिजली की तरह राहत देने के लिए मेट्रो को भी सब्सिडी दे सकती है ताकि यात्रियों पर किराए का बोझ न बढ़े, उनका कहना था कि इस मामले में लीगल ओपिनियन चेक की जाएगी, उसी के बाद कुछ कहा जा सकता है।

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